(आशु सक्सेना) गुजरात चुनावों से पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपना पूरा जोर लोगों को पार्टी की ओर आकर्षित करने पर लगा दिया है। सूबे के दूसरे तीन दिवसीय दौरे में उनकी कोशिश जनता और जमीन से जुड़ने की है। ऐसे में सवाल है क्या इस बार के चुनावों में वे हवा का रुख कांग्रेस के पक्ष में करने में कामयाब होंगे? जबकि सामने मुकाबला सीधे पीएम मोदी से है।
भाजपा ने पिछला गुजरात विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेत्तृत्व में लड़ा था। मोदी ने देश के अगले प्रधानमंत्री के दावेदार की चर्चा के बीच सूबे में तीसरी बार विजय पताका फहराई और 26 दिसंबर 2012 को चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। भाजपा यह चुनाव भी मोदी के चेहरे पर लड़ रही है। भाजपा की चिंता यह है कि पिछले तीन चुनाव में पार्टी का ग्राफ लगातार नीचे आया है, अगर वह सिलसिला जारी रहा, तब इस बार सत्ता हाथ से जा भी सकती है।
कांग्रेस के रणनीतिकारों ने राहुल के चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत भाजपा के गढ़ सौराष्ट्र से की है। भाजपा का गढ़ होने के बावजूद सौराष्ट्र प्रदेश का सबसे पिछड़ा इलाका है। क्षेत्र में आदिवासियों की ठीकठाक आबादी है। यही वजह है कि पीएम मोदी इस बार के विधानसभा चुनाव में खुद को सहज महसूस नहीं कर रहे हैं।
उनकी दिक्कत यह है कि सूबे को इस बार कौन सा नारा दिया जाये जिससे वोटर को इस बार भी अपने पक्ष में किया जा सके। पिछला चुनाव उन्होंने देश के भावी पीएम का नारा देकर जीता था। इस बार उन्हें पीएम का इम्तिहान पास करना है।
पीएम मोदी ने गुजरात के पिछले तीन चुनाव सांप्रदायिक उन्माद, विकास मॉडल और देश के भावी प्रधानमंत्री का नारा देकर लड़ चुके हैं । इस चुनाव में लोग उन्हें तभी चुनेंगे, जब लोग उनसे पीएम के तौर पर खुश होंगे। फिलहाल के हालात प्रधानमंत्री की जबावदेही के तोर पर उनके अनुकूल नहीं है लिहाज़ा अभी तक वह यह तय नहीं करपाएं हैं कि इस बार कौन सा ब्रह्मास्त्र चलें।
सौराष्ट्र में राहुल के स्वागत से पीएम मोदी के लिए सूबे भाजपा का गढ़ बचाने की चुनौति साफ़ नज़र आ रही है ।
बहरहाल इस बार गुजरात में राहुल गांधी लोगों से जुड़ने के नए तौर-तरीके अपना रहे हैं। चाहे वड़ोदरा में विद्यार्थी संवाद हो या छोटा उदयपुर में राठवा गेर समाज के साथ डांस। तीन दिनों के भीतर राहुल गांधी ने ये बताने की पूरी कोशिश की कि वे भी उन्हीं लोगों का हिस्सा हैं और उनकी समस्याओं को बखूबी समझते हैं।
गुजरात दौरे पर गए राहुल बिल्कुल नए अंदाज में दिख रहे हैं। अपने पिछले दौरे में वो कई मंदिरों में गए। इस बार वह सामुदायिक कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं। छोटा उदयपुर में आदिवासियों के साथ उनकी लोकधुन पर थिरकते दिखे, तो दाहोद में एक मंदिर में भजन-कीर्तन में शामिल हुए।
दाहोद में एक रैली में मोदी सरकार को उद्योगपतियों की सरकार बताते हुए राहुल गांधी ने कहा कि इस सरकार में सिर्फ कुछ गिने-चुने लोगों को फायदा पहुंचाया जा रहा है और गरीबों को सिर्फ सपने दिखाए जा रहे हैं। राहुल ने कहा कि गुजरात में अंडरकरंट है और भाजपा पूरी तरह हिल गई है।
उन्होंने कहा कि ऊपर से शांति दिखाई दे रही है, लेकिन नीचे भाजपा की टीम साफ हो गई है। राहुल ने कहा कि कुछ महीने बाद गुजरात में नई सरकार आएगी और वह सरकार पीएम के 'मन की बात' की सरकार नहीं होगी।
राहुल के बारे में एक छात्रा ने कहा कि हमें उन पर भरोसा है कि वह हमारी बात को समझेंगे। पर बड़ा सवाल ये है कि क्या लोग उन पर भरोसा करेंगे? बशीर अहमद 40 साल से कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं। पान और पानी घर चलाते हैं। पिछले कई सालों से कांग्रेस के प्रदर्शन से मायूस थे, लेकिन इस बार कुछ उम्मीद जगी है।
यह पूछे जाने पर कि क्या राहुल कुछ बदलाव ला पाएंगे, बशीर ने कहा, आदमी धक्का खाने से ही सीखता है, राहुल को बहुत झटके लगे हैं अब वह काम करना सीख गए हैं। कर्जन तालुका में हितेश पटेल की फोटोस्टेट की दुकान है। वह के बड़े समर्थक रहे, लेकिन उन्हें अब लगता है कि बदलाव का समय आ गया है. हितेश कहते हैं कि भाजपा ने एक भी वादा पूरा नहीं किया, अब लोग बदलाव चाहते हैं।
सालों से मायूस कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में इस बार उम्मीद जगी है। चुनाव अभी दो महीने दूर हैं, लेकिन सरगर्मियां अभी से चरम पर पहुंचती जा रही हैं। वहीं भाजपा का कहना है कि राहुल अभी बच्चे हैं और सिर्फ रटा-रटाया भाषण पढ़ रहे हैं। भाजपा की मनःस्थिति का अंदाज़ इस घटना से लगाया जा सकता है कि जब राहुल पीएम मोदी के गढ़ में ताल ठोक रहे थे। तब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह यूपी के अमेठी में राहुल गाँधी को ललकार रहे थे।
अमेठी, राहुल गाँधी का संसदीय क्षेत्र है। दिलचस्प पहलू यह है पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने सीएम योगी के साथ अमेठी में कई योजनाओं का शिलान्यास किया। इस मौके पर पार्टी की पराजित उम्मीदवार, केंद्रीय मंत्री और गुजरात से पार्टी की सांसद स्मृति ईरानी भी मौजूद थीं।
गुजरात में इस बार सत्ता विरोधी लहर का लाभ कांग्रेस मिल सकता है। यूँ प्रदेश में आम आदमी पार्टी और कुछ क्षेत्रीय दल चुनाव मैदान में होंगे, लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच होगा। फिलहाल राहुल के दौरे के बाद कहा जा सकता है कि कांग्रेस चुनावी दौड़ में आगे निकलती नज़र आ रही है।