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(आशु सक्सेना) उनको आपने साठ साल का मौका दिया, हमको साठ महीने का मौका दें। यह उदगार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2013 में उस वक्त व्यक्त किये थे, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए उन्हें पार्टी का प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किया था। प्रधानमंत्री मोदी को देश की सेवा करते हुए तीन साल यानि 36 महीने पूरे हो चुके है। तीन साल बाद मोदी ने जो नया संकल्प किया है वह अगले साठ महीने में पूरा होना है। मोदी ने आजादी की 71 वीं सालगिरह पर एलान किया कि देश की 75 वीं सालगिरह के मौके पर देश के हर परिवार के पास अपना पक्का मकान होगा और लोगों की आमदनी भी दोगुनी हो चुकी होगी। अब सवाल यह है कि साठ साल का जुमला सत्तर साल में कब बदला और पिछले तीन साल यानि 36 महीने में पीएम मोदी ने देश में क्या बदलाव किया है। ज्हां तक बदलाव का सवाल है तो पीएम मोदी की एकमात्र उपलब्धि नोट बंदी कही जा सकती है। भ्रष्टाचार पर अंकुश और आतंकवाद के खात्मे के मकसद से पिछली दिवाली के बाद अचानक यह फैसला किया गया था। मोदी सरकार के इस सबसे महत्वपूर्ण फैसले को करीब एक साल गुजरने आया, लेकिन अभी तक यह तय नहीं हो सका है कि इस फैसले से देश में भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर रोक लगी है।

यह बात दीगर है कि रिज़र्व बैंक आॅफ इंडिया अभी तक यह नही बता पायी है कि नोट बंदी के बाद पुराने नोट किस तादाद में जमा हुए है। प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्रचीर से यह घोषणा जरूर की है कि नोट बंदी के बाद सरकार को तीन लाख करौड़ का काला धन मिला है। जिस रिपोर्ट के आधार पर यह आंकड़ा प्रधानमंत्री ने देशवासियों को बताया है, उसकी सत्यता सवालों के घेरे में है। बहरहाल, नोट बंदी को अगर मोदी जी का इवेंट मेनेजमेंट माना जाये, तो आने वाली दिवाली पर नए नोट ही चर्चा में होंगे, क्योंकि नोटेबंदी बाद कि पहली दिवाली पर नया 2000 और 200 का नोट सबसे ज़्यादा चलन में होगा। अर्थशास्त्र के नियम के मुताबिक पुरानी मुद्रा नई मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है। इस दिवाली पर पूजा के लिए नए नोटों का इस्तेमाल होगा और खरीददारी में पुराने नोट ही चलन में होंगे। मोदी सरकार ने 2000, 500, 200 और 50 का नया नोट नए आकार और डिज़ाइन वाला बाजार में ला दिया है। लिहाजा अब चलन में पहले पुराने 100 और 50 के नोट का इस्तेमाल किया जायेगा। इसके अलावा मोदी सरकार के ऐतिहासिक फैसलों में जीएसटी,आधार की अनिवार्यता और मनरेगा पर विशेष ध्यान आदि अहम फैसले माने जा सकते हैं। आपको स्मरण करवा दें यह तीनों ही मुद्दे कांग्रेस के कार्यकाल से ही प्रस्तावित थे और उस वक्त के मजबूत विपक्ष भाजपा के विरोध के चलते अटके हुए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मंहगाई को सबसे बड़ा हथियार बनाया था। इस दिशा में मोदी सरकार पिछली सरकार से भी आगे निकल कर अपने चरम पर पहुँच चुकी है। लिहाजा इस मुद्दे पर सत्तापक्ष बात करने से कनी काटता है। प्रधानमंत्री मोदी अब अपने भाषणों में मंहगाई का ज़िक्र भी नही करते है। इसका कारण यह है कि देशवासियों ने आजादी के सत्तर साल पूरे होते हुए मोदी कार्यकाल में मंहगाई को अपने चरम पर देख लिया है। देश में दाल की कीमत कभी 200 रूपये नही हुई थी, लेकिन संपन्न देश के लोगों ने पिछले 36 महीने के दौरान 200 रूपये किलो दाल का स्वाद भी ले लिया है। इस दौरान सबसे सस्ती बिकने वाली चने की दाल भी 200 रूपये तक बिकने का गौरव हासिल कर चुकी हे। आपको याद होगा 2014 में भाजपा के चुनाव प्रचार का सबसे लोकप्रिय नारा "बहुत हुई मंहगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार" था। अब 36 महीने बाद कहा जा सकता है कि पीएम मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान जो वादे किये थे, वह जमीन पर नज़र नही आ रहे हैं। इसके बावजूद भाजपा का सूबों में विजय अभियाान जारी है। संभवतः यह विजय अभियान कांग्रेस के साठ साल के कामकाज से लोगों की नाराजगी को माना जा सकता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नतीजे इसकी जिवंत मिसाल है। कांग्रेस और सपा गठबंधन को करारी शिकस्त मिली। सपा 1993 के मुकाबले अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई और कांग्रेस का तो करीब करीब सूपड़ा ही साफ हो गया। बहरहाल प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने साठ साल बनाम साठ महीने की बात कहनी बंद कर दी। धीरे धीरे पीएम मोदी के भाषणों मेे सत्तर साल का ज़िक्र होने लगा। मोदी अपने भाषणों में कहने लगे कि पिछले 70 साल से लोग तकलीफ में हैं। यहां मोदी ने ईमानदारी का परिचय दिया। उन्होंने स्वीकार किया कि इन सत्तर साल में कांग्रेस के साठ साल के अलावा दस साल जो सरकारें सत्ता में रही वह भी कहीं ना कहीं जनविरोधी थी। अब उनकी सरकार आखिरी व्यक्ति तक सुविधा पहुंचाने के संकल्प को पूरा करेगी। मोदी सरकार का कहना है कि गरीबी दूर करने के लिए उसने तीन साल सख्त फैसले लिए है। सरकार के तीन साल के कार्यकाल के बाद मोदी सरकार अपने कामकाज के बूते पर जनादेश मांगने की स्थिति में नही है। लिहाजा मोदी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर आजादी तक के पांच साल को आधार बना कर घोषणा की है कि अगले पांच साल संकल्प से सिद्धी की यात्रा के तौर पर मनाये जाएंगे। सवाल यह है कि क्या मतदाता 2019 के चुनाव में नरेंद्र मोदी को पूर्ण बहुमत देगा या फिर भाजपा के खिलाफ नाराजगी जाहिर करेगा। अगर मतदाता की नाराजगी भाजपा खासकर मोदी से हुई तो संभव है कि मोदी सरकार का गठन करने में सफल हो जाएं। लेकिन उस मोदी सरकार की स्थिति बाजवेयी जी की 13 महीने तक चली पहली एनडीए सरकार जैसी होगी। उस मोदी सरकार का अस्तित्व सहयोगी दलों की मेहरवानी पर निर्भर होगा। देश के सामने एक बार फिर मध्यावधि चुनाव का खतरा मंडरा रहा होगा।

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