जयपुर: बॉलीवुड अभिनेता इरफान खान के उस बयान से विवाद खड़ा हो गया है जब उन्होंने कुर्बानी के नाम पर बकरा काटने की प्रथा पर अपनी राय रखी। इरफान अपनी आने वाली फिल्म 'मदारी' के प्रमोशन के लिए जयपुर पहुंचे हुए थे। पत्रकारों से बातचीत के दौरान इरफान ने कहा 'जितने भी रीति-रिवाज, त्यौहार हैं, हम उनका असल मतलब भूल गए हैं, हमने उनका तमाशा बना दिया है। कुर्बानी एक अहम त्यौहार है। कुर्बानी का मतलब बलिदान करना है। किसी दूसरे की जान कुर्बान करके मैं और आप भला क्या बलिदान कर रहे हैं?' इरफान ने कहा 'जिस वक्त यह प्रथा चालू हुई होगी, उस वक्त भेड़-बकरे भोजन के मुख्य स्रोत थे। तमाम लोग थे जिन्हें खाने को नहीं मिलता था। उस वक्त भेड़-बकरे की कुर्बानी एक तरह से अपनी कोई अज़ीज़ चीज़ कुर्बान करना और दूसरे लोगों में बांटना था। आज के दौर में बाजार से दो बकरे खरीद कर लाए तो उसमें आपकी कुर्बानी क्या है। हर आदमी दिल से पूछे, किसी और की जान लेने से उसे कैसे सवाब मिल जाएगा, कैसे पुण्य मिलेगा।' अपनी बात पूरी करते हुए इरफान ने कहा कि 'जो फतवा देने वाले लोग हैं, उन लोगों को इस्लाम के नाम को बदनाम करने वालों के खिलाफ फतवा देना चाहिए। उनके खिलाफ देना चाहिए जो आतंकवाद की दुकान चला रहे हैं, जिन्होंने आतंकवाद के बिजनेस खोल रखे हैं।
मेरा सौभाग्य है कि मैं किसी ऐसे देश में नहीं रहता जहां धार्मिक कानून चलता है। मुझे इस पर गर्व है।' इरफान के इस बयान पर कुछ इस्लामिक जानकारों ने आपत्ति जताई है। जयपुर के इस्लामिक स्कॉलर अब्दुल लतीफ ने कहा है कि इरफान एक्टिंग के मास्टर हैं लेकिन धार्मिक मामलों के नहीं। उन्होंने जो कुछ कहा कि उसका कोई महत्व नहीं है और उन्हें अपने निजी स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसा नहीं कहना चाहिए था।