मुंबई: मशहूर फिल्म डायरेक्टर और राइटर कुंदन शाह का शनिवार को मुंबई में निधन हो गया। वो 69 साल के थे। कई यादगार फिल्में बनाने वाले कुंदन शाह ने छोटे परदे के लिए भी कई पॉपुलर टीवी सीरियल्स बनाये थे। जानकारी के मुताबिक उनका निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ।
शाह का जन्म 19 अक्तूबर, 1947 को हुआ था। उन्होंने पुणे के भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) से निर्देशन की पढ़ाई की थी। 1983 में आई 'जाने भी दो यारो' से फीचर फिल्मों की दुनिया में कदम रखा था। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही, लेकिन समय के साथ इसने कल्ट फिल्म का दर्जा हासिल कर लिया।
समय के साथ 'जाने भी दो यारो' भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे लोकप्रिय व्यंग्यात्मक फिल्मों में से एक बन गई। इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। शाह ने 2015 में अपने पूर्व संस्थान एफटीआईआई में छात्र विरोध प्रदर्शन के दौरान राष्ट्रीय पुरस्कार लौटा दिया था। उन्होंने 1986 में नुक्कड़ धारावाहिक के साथ टेलीविजन की दुनिया में पदार्पण किया था।
1988 में उन्होंने मशहूर हास्य धारावाहिक 'वागले की दुनिया' का निर्देशन किया जो कॉर्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण द्वारा रचित आम आदमी के किरदार पर आधारित थी। शाह ने 1993 में शाहरूख खान अभिनीत 'कभी हां कभी ना' के साथ बॉलीवुड में वापसी की। 2000 में आई उनकी प्रीति जिंटा, सैफ अली खान अभिनीत फिल्म क्या कहना बॉक्स ऑफिस पर सफल रही थी। इसके बाद भी उन्होंने कुछ फिल्में बनायीं, लेकिन व्यवसायिक सफलता उनसे दूर रही।
पीएम मोदी ने व्यक्त किया शोक
पीएम मोदी ने फिल्मकार कुंदन शाह के निधन पर आज शोक व्यक्त किया और कहा कि आम लोगों के संघर्ष को दिखाने के लिए हास्य व्यंग्य के अनोखे इस्तेमाल के लिए उन्हें याद किया जाएगा। उन्होंने ट्विट किया, मेरी संवेदना उनके परिवार एवं उनके प्रशंसकों के प्रति है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
कुंदन शाह को हमेशा उनकी फिल्म जाने भी दो यारों के लिए याद किया जाता था। इसके अलावा उन्होंने 'कभी हां कभी ना' (फिल्म), 'क्या कहना' (फिल्म) 'नुक्कड़' और 'वागले की दुनिया' जैसे फेमस शो भी बनाये। जाने भी दो यारों (1983), कभी हां कभी ना (1993) जैसी फिल्में और नुक्कड़ (1986), वाग्ले की दुनिया (1988) जैसे एवरग्रीन टीवी शो के लिए पहचाने जाने वाले कुंदन की आखिरी फिल्म 'पी से पीएम तक' साल 2014 में रिलीज हुई थी।
एफटीआई पुणे के स्टूडेंट रहे कुंदन शाह की पहली फिल्म बतौर डायरेक्टर 'जाने भी दो यारों' थी। ये फिल्म हिंदी सिनेमा की क्लासिक फिल्मों में से एक मानी जाती है। उन्हें इस फिल्म के नेशनल अवॉर्ड भी मिला था (इंदिरा गांधी अवॉर्ड)।