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संविधान ने देश में बदलाव लाने में उल्लेखनीय मदद की: सीजेआई खन्ना

मुंबई: बॉलीवुड के नामी अभिनेता विनोद खन्ना का गुरुवार को वर्ली श्मशान पर उनका अंतिम संस्कार किया गया।उनके सबसे छोटे बेटे साक्षी खन्ना ने उन्हें मुखाग्नि दी। गौरतलब है कि 70 साल के विनोद खन्ना का आज (गुरूवार) निधन हो गया था। इस मौके पर अमिताभ बच्चन,गुलजार, कबीर बेदी, रंजीत, सुभाष घई, अभिषेक बच्चन, समेत तमाम बॉलीवुड की हस्तियां और नामचीन लोग ने नम आंखों से इस महान अभिनेता को अंतिम विदाई दी।दिग्‍गज अभिनेता और भाजपा सांसद विनोद खन्‍ना पिछले काफी दिनों से डिहाइड्रेशन की परेशानी की वजह से हॉस्पिटल में एडमिट थे। विनोद खन्‍ना का 70 साल की उम्र में निधन हुआ है। फिल्‍मों से लेकर राजनीति, विनोद खन्‍ना काफी सक्रिय रहे थे। विनोद खन्ना का मुंबई के एचएन रिलायंस अस्पताल में इलाज चल रहा था। खन्ना को शरीर में पानी की कमी के चलते 31 मार्च को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हाल ही में उनकी एक फोटो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी, जिसके बाद उनके बेटे ने कहा था कि उनक तबियत अभी ठीक है। विनोद खन्‍ना भारतीय फिल्‍मों के दिग्‍गज अभिनेता रहे हैं। विनोद खन्ना के अस्‍पताल में भर्ती होने के बाद से ही उनके स्वास्थ्य के लिए पूरा हिंदी सिनेमा जगत दुआएं कर रहा था। सलमान खान आधी रात को विनोद खन्ना से मिलने सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल पहुंचे थे। सलमान खान पहले भी विनोद खन्ना के साथ कई फिल्में कर चुके हैं और उन्हें अपना लकी मैस्कट और मेंटर मानते रहे हैं। सलमान के अलावा महाराष्‍ट्र के सीएम देवेंद्र फड़णवीस भी उन्हें मिलने पहुंचे थे। वहीं, अभिनेता इरफान खान ने भी विनोद खन्ना के स्वास्थ्य की कामना करते हुए उनके लिए अंगदान की भी पेशकश की थी।

इरफान खान ने गुरुवार को कहा कि वह अभिनेता विनोद खन्ना की हाल की एक फोटो देखकर हैरान रह गए । इरफान खान ने गुजरे जमाने के दिग्गज अभिनेता के जल्द स्वस्थ होने की कामना की। उनका जन्म अविभाजित भारत के पेशावर में 1946 को हुआ था। वे पंजाब के गुरदासपुर से चार बार सांसद बने। उन्होंने 140 से ज़्यादा फिल्मों में काम किया था। विनोद खन्ना 1968 से भारतीय फिल्मों में आए. 1998 में पहली बार विनोद खन्ना सांसद चुने गए थे। 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनेट में उन्हें (विनोद खन्ना को) विदेश राज्य मंत्री बनाया गया था। विनोद खन्ना अपने वक्त के सबसे लोकप्रिय अभिनेताओं में शुमार होते थे। उन्होंने कई सुपरहिट फिल्मों में अपनी अदाकारी का जौहर दिखाया। विनोद खन्ना ने सुनील दत्त की 1968 में आई फिल्म 'मन का मीत' से बॉलीवुड में कदम रखा था। इस फिल्म में उन्होंने (विनोद खन्ना ने) विलेन का किरदार निभाया था। अपने शुरुआती फिल्मी कॅरियर में विनोद खन्ना सह अभिनेता या विलेन के रोल में ही ज़्यादातर नजर आए। अभिनेता ने वर्ष 1968 में ‘मन का मीत’ फिल्म के साथ अभिनय की दुनिया में कदम रखा था। उन्हें ‘मेरे अपने’, ‘मेरा गांव मेरा देश’, ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘कुर्बानी’, ‘दयावान’ और ‘जुर्म’ जैसी फिल्मों में उनकी भूमिकाओं के लिए खासतौर पर याद किया जाता है। अंतिम बार वह वर्ष 2015 में शाहरूख खान अभिनीत ‘दिलवाले’ में नजर आए थे।विनोद खन्ना को फिल्म 'हाथ की सफाई' के लिए 1974 में बेस्ट स्पोर्टिंग एक्टर के लिए फिल्म फेयर अवॉर्ड दिया गया था।विनोद खन्ना को प्रारंभिक सफलता गुलजार की फिल्म 'मेरे अपने से' मिली। इसे महज एक संयोग ही कहा जाएगा कि गुलजार ने बतौर निर्देशक करियर की शुरुआत की थी। छात्र राजनीति पर आधारित इस फिल्म में मीना कुमारी ने भी अहम भूमिका निभाई थी। फिल्म में विनोद खन्ना और शत्रुघन सिंहा के बीच टकराव देखने लायक था। साल 1973 में विनोद खन्ना को एक बार फिर निर्देशक गुलजार की फिल्म 'अचानक' में काम करने का अवसर मिला जो उनके करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। फिल्म से जुड़ा एक रोचक तथ्य है कि इस फिल्म में कोई गीत नहीं था। साल 1974 में प्रदर्शित फिल्म 'इम्तिहान' विनोद खन्ना के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। साल 1977 में प्रदर्शित फिल्म 'अमर अकबर ऐंथनी' विनोद खन्ना के सिने करियर की सबसे कामयाब फिल्म साबित हुई। मनमोहन देसाई के निर्देशन में बनी यह फिल्म खोया पाया फॉर्मूले पर आधारित थी। तीन भाइयों की जिंदगी पर आधारित इस मल्टीस्टारर फिल्म में अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर ने भी अहम भूमिका निभाई थी। साल 1980 में प्रदर्शित फिल्म 'कुर्बानी' विनोद खन्ना के करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। फिरोज खान के निर्माण और निर्देशन में बनी इस फिल्म में विनोद खन्ना अपने दमदार अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से नामांकित किये गए। अस्सी के दशक में विनोद खन्ना शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे और ऐसा लगने लगा कि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को उनके सिंहासन से विनोद खन्ना उतार सकते हैं लेकिन विनोद खन्ना ने फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कह दिया और आचार्य रजनीश के आश्रम की शरण ले ली।विनोद खन्ना उन दिनों अपनी जगह अमिताभ के बराबर बना चुके थे और सफल एक्टर्स की गिनती में गिने जाने लगे थे। लेकिन तभी उनकी मां का निधन हुआ और वो बहुत डिस्टर्ब हो गए। तभी वो आचार्य रजनीश (ओशो) से मिले। वो उनसे काफी प्रभावित हुए। 1980 के दशक में अचानक से विनोद खन्ना ने अपने फिल्मी करियर से सन्यास ले लिया और अमेरिका जाकर ओशो के आश्रम में रहने लगे। वो आश्रम में बगीचे के माली बन गए। ओशो ने उन्हें स्वामी विनोद भारती नाम दिया था। उस समय उनकी शादी गीतांजलि से हो चुकी थी और उनके दो बेटे अक्षय और राहुल थे। सन्यास लेने के बाद इन दोनों का तलाक हो गया।साल 1987 में विनोद खन्ना ने एक बार फिर फिल्म 'इंसाफ' के जरिये फिल्म इंडस्ट्री का रुख किया। साल 1988 में प्रदर्शित फिल्म 'दयावान' विनोद खन्ना के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शामिल है। हालांकि यह फिल्म टिकट खिड़की पर कामयाब नहीं रही लेकिन समीक्षकों का मानना है कि यह फिल्म विनोद खन्ना के करियर की उत्कृष्ठ फिल्मों में से एक है। फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाने के बाद विनोद खन्ना ने समाज सेवा के लिए साल 1997 में राजनीति में प्रवेश किया और भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से साल 1998 में गुरदासपुर से चुनाव लड़कर लोकसभा सदस्य बने। बाद में केन्द्रीय मंत्री के रूप में भी उन्होंने काम किया। विनोद खन्ना इस बार के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के टिकट पर गुरदासपुर से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे हैं।साल 1997 में अपने पुत्र अक्षय खन्ना को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने के लिए विनोद खन्ना ने फिल्म 'हिमालय पुत्र' का निर्माण किया। फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह से नकार दी गयी। दर्शकों की पसंद को ध्यान में रखते हुए विनोद खन्ना ने छोटे पर्दे की ओर भी रुख किया और महाराणा प्रताप और मेरे अपने जैसे धारावाहिकों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया। विनोद खन्ना ने अपने चार दशक लंबे सिनेमा करियर में लगभग 150 फिल्मों में अभिनय किया है।

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