नई दिल्ली: संसद में मंगलवार को प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा की सिफारिशों पर चलें तो मोदी सरकार के बुधवार को पेश होने वाले आम बजट में व्यक्तिगत आयकर दरों में कुछ राहत मिल सकती है और कंपनी कर की दरों में कटौती की दिशा में भी ठोस पहल हो सकती है। वर्ष 2016-17 की आर्थिक समीक्षा में नोटबंदी से प्रभावित अर्थव्यवस्था में आर्थिक गतिविधियों को गति देने के लिये न केवल व्यक्तिगत आयकर की दरों में कटौती की जरूरत बल्कि कंपनी कर में कमी लागे की योजना को तेजी से लागू करने की सिफारिश की गयी है। समीक्षा में सभी तरह की ऊंची कमाई करने वालों को कर दायरे में लाने पर जोर दिया गया है। वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा संसद में मंगलवार को पेश वर्ष 2016-17 की आर्थिक समीक्षा में नोटबंदी के प्रभावस्वरूप चालू वित्त वर्ष की आर्थिक वृद्धि दर में 0.5 प्रतिशत का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है। आर्थिक समीक्षा में इस प्रभाव का आकलन करते हुये सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है। इससे पहले केन्द्रीय साख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने वर्ष के दौरान जीडीपी वृद्धि दर 7.1 प्रतिशत रहने का अग्रिम अनुमान व्यक्त किया था। तब सीएसओ ने कहा था कि इसमें नोटबंदी के प्रभाव को शामिल नहीं किया गया है। हालांकि, समीक्षा में कहा गया है कि अगले वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर उछलकर 6.75 से लेकर 7.5 प्रतिशत के दायरे में पहुंच सकती है। इसके लिये उसने आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के उपाय करने पर जोर दिया है।
समीक्षा में हालांकि, उच्च आय वर्ग से उसके तात्पर्य के बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन ऐसा लगता है कि उसका इशारा ऊंची कृषि आय वालों की तरफ है। इस समय समूची कृषि आय आयकर के दायरे से बाहर है। समीक्षा में महात्मा गांधी के ‘हर आंख से आंसू पोंछने’ की सोच का जिक्र करते हुये सर्वजनिन बुनियादी आय (यूबीआई) योजना को लागू करने पर जोर दिया गया है। योजना के तहत गरीब को कुछ आय उपलब्ध कराकर देश से गरीबी समाप्त करने की बात की गई है। समीक्षा में कहा गया है, ‘नोटबंदी के बाद व्याप्त अनिश्चितता को देखते हुये हमने वर्ममान मूल्य पर आधारित जीडीपी वृद्धि दर में 0.25 प्रतिशत से लेकर एक प्रतिशत तक के दारे में कमी आने का अनुमान लगा रखा है। यह इस मान्यता पर आधारित है कि वर्तमान्य मूल्य आधार पर जीडीपी वृद्धि दर 11.25 प्रतिशत रहेगी। दूसरी तरफ अनुमानित सात प्रतिशत की वास्तविक वृद्धि को आधार मानते हुये वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर में 0.25 प्रतिशत से लेकर 0.5 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान लगाया गया है।’ आम बजट से एक दिन पहले पेश की गई समीक्षा में कहा गया है कि नोटबंदी के बाद आने वाले कुछ समय में वस्तु एवं सेवाकर के क्रियान्वयन और दूसरे संरचनात्मक सुधारों से अर्थव्यवस्था को इसकी क्षमता के अनुरूप 8 से 10 प्रतिशत की तीव्र वृद्धि के स्तर पर पहुंचाया जा सकेगा। समीक्षा में एक अप्रैल 2017 से शुरू होने वाले नये वित्त वर्ष 2017-18 में आर्थिक वृद्धि 6.75 प्रतिशत से लेकर 7.5 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान है। इसमें भी भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा। नोटबंदी का असर अगले साल भी खिंचने के जोखिम को कम माना गया है। सरकार को महंगाई के मुद्दे पर सतर्क करते हुये कहा गया है कि उसे दाल के अलावा दूसरे कृषि उत्पादों पर भी नजर रखनी चाहिये। पिछले साल दाल के दाम काफी चढ़ गये थे, ऐसा ही दूसरे कृषि उत्पादों के मामले में नहीं हो इस पर नजर रखनी होगी। ‘मुद्रा की तंगी से दूसरे कृषि उत्पादों की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। विशेषतौर से दूध (जहां खरीद कम रही है), दक्षिणी राज्यों में जहां सूखा पड़ा है और गन्ने की उपलब्धता कम रहने से उत्पादन कम रह सकता है उनमें चीनी पर नजर रखने की जरूरत है। आलू और प्याज के मामले में जिन राज्यों में बुवाई कम हुई है नजर रखने की जरूरत है।’ समीक्षा में वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ने के खतरे की तरफ भी इशारा किया गया है। इसके अलावा प्रमुख देशों के बीच व्यापार क्षेत्र में तनाव पैदा होने के बारे में भी सरकार का ध्यान खींचा गया है। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम द्वारा तैयार की गई आर्थिक समीक्षा में दावा किया गया है कि नये नोटों के जरूरत के मुताबिक अर्थव्यवस्था में आने के बाद आर्थिक वृद्धि की रफ्तार सामान्य हो जायेगी। नोटबंदी के तरीके को इसमें असामान्य बताया गया है। मौद्रिक प्रभाव के लिहाज से यह असामान्य रही है। इसमें कहा गया है, ‘नोटबंदी में एक तरह की मुद्रा -नकदी- की आपूर्ति में भारी कमी आ गई जबकि दूसरी तरफ -मांग जमा (बैंक जमा)- के रूप में इतनी ही मुद्रा में वृद्धि हो गई। ऐसा इसलिये हुआ कि जिस मुद्रा को बंद किया गया उसे बैंकों में जमा कराने के लिये कहा गया।’ बहरहाल, समीक्षा में नोटबंदी के प्रभाव को कम करने के लिये प्रोत्साहन उपायों पर जोर दिया गया है। इसमें कहा गया है, ‘विमुद्रीकरण एक ताकतवर डंडे के समान था जिसके उपहार स्वरूप अब कुछ प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।’ इसके लिये पांच सूत्रीय रणनीति का उल्लेख किया गया है। इसमें वस्तु एवं सेवाकर :जीएसटी: को व्यापक कवरेज के साथ अमल में लाने पर जोर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि ऐसे क्षेत्र जहां कालेधन का सृजन होता है उन्हें इसके दायरे में लाया जाना चाहिये। इस मामले में भूमि और दूसरी अचल संपत्तियों का विशेषतौर पर जिक्र किया गया है। समीक्षा में कहा गया है कि नोटबंदी से अल्पकाल में लागत भुगतनी पड़ी है लेकिन इसमें दीर्घकालिक लाभ की संभावनायें छुपीं हैं। इसके असर को कम करने और फायदा बढ़ाने के लिये मांग आधारित मौद्रीकरण, भूमि और रीयल एस्टेट क्षेत्र को जीएसटी के दायरे में लाकर सुधारों को बढ़ाना होगा। व्यक्तिगत आयकर दर और भू-संपत्ति के मामले में स्टांप शुल्क को कम करने तथा कंपनी कर में कटौती के लिये निश्चित कार्यक्रम घोषित करने को कहा गया है। कर प्रशासन को बेहतर बनाने, विसंगति दूर करने और जवाबदेही में सुधार पर जोर दिया गया है। कच्चे तेल के दाम 60-65 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाने की स्थिति में देश में खपत कम हो सकती है, सार्वजनिक निवेश घट सकता है और कंपनियों के मार्जिन में कमी आ सकती है। अंतत: निजी निवेश पर इसका प्रभाव पड़ सकता है। ‘उंचे तेल मूल्यों से मुद्रास्फीति बढ़ने की सूरत में मौद्रिक नीति को उदार बनाने की गुंजाइश भी कम हो सकती है।’