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संविधान ने देश में बदलाव लाने में उल्लेखनीय मदद की: सीजेआई खन्ना

बीजिंग: चीन के सरकारी मीडिया ने आज कहा है कि एनएसजी की सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी और जैश-ए-मुहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र की ओर से प्रतिबंध के मुद्दे पर उपजे मतभेदों के मद्देनजर भारत में चीनी सामान के बहिष्कार का जो अभियान चल रहा है, उसका ज्यादा ‘राजनीतिक असर’ नहीं होने वाला है और यह ‘द्विपक्षीय व्यापारिक संबंधों को मूल रूप से बदलने में' विफल रहने वाला है। भारतीय मीडिया में आई खबरों का हवाला देते हुए सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि ‘भारत में कुछ नेताओं और नागरिकों ने हाल ही में चीनी उत्पादों के बहिष्कार के अभियान शुरू किए हैं।’लेख में कहा गया, ‘वे लोग परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के दाखिल न हो पाने और पाक आधारित आतंकी समूह लश्कर-ए-तैयबा के एक कमांडर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध लगवाने की भारत की कोशिश को बीजिंग की ओर से अवरूद्ध कर दिए जाने के लिए चीन को दोषी बताते हैं।’ चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के इंस्टीट्यूट ऑफ एशिया-पैसिफिक स्टडीज में सहायक शोधार्थी के रूप में कार्यरत लियु शियाओशू द्वारा लिखे गए इस लेख में कहा गया, ‘बीजिंग और नयी दिल्ली इन दो मुद्दों पर बातचीत कर रहे हैं और ऐसा माना जा रहा है कि अंतत: आपसी सहमति पर पहुंचा जाएगा।’ पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के प्रमुख अजहर पर भारत संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध की मांग कर रहा है। यह संगठन दो जनवरी के पठानकोट हमले का आरोपी है। चीन ने भारत के इस कदम को विफल करते हुए अजहर को संयुक्त राष्ट्र से प्रतिबंधित कराने के मुद्दे पर तकनीकी आधार पर दूसरी बार अड़ंगा लगा दिया था।

चीन और भारत के संबंधों पर सीमा विवाद और पाकिस्तान के साथ चीन के संबंधों की छाया हमेशा से मंडराते रहने की बात को रेखांकित करते हुए लेख में कहा गया, ‘हालांकि दोनों पक्ष काफी समय पहले ही यह समझ गए थे कि एक-दूसरे के प्रति शत्रुता रखने के बजाय मतभेदों को दरकिनार कर देना दोनों के समग्र विकास लिए लाभदायक है।’ इसमें कहा गया, ‘चीनी सामान के बहिष्कार का राजनीतिक असर उस असर से बेहद कम होगा, जितना इस आंदोलन को शुरू करने वाले लोग देखना चाहते हैं। इतना ही नहीं, यह चीन के साथ भारत के मौजूदा व्यापारिक संबंधों में मूलभूत बदलाव लाने में भी विफल रहेगा। अंतत: यह एक छोटी सी घटना से बढ़कर कुछ नहीं होगा।’ पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 1988 में हुई चीन यात्रा के बाद से भारत और चीन के राजनीतिक संबंधों में आए सुधार का उल्लेख करते हुए अखबार ने कहा कि दोनों देशों के आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को भी बढ़ावा मिला है, जिसके बाद चीन वर्ष 2013 से भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है। इसमें कहा गया, ‘निश्चित तौर पर, राजनीतिक मुद्दों से इतर, कुछ आर्थिक कारकों ने भी चीन और भारत के व्यापारिक विकास को बाधित किया है। दोनों देशों के बीच के अनसुलझे मुद्दे कई बार उनके आपसी राजनीतिक विश्वास पर असर डालते हैं और यह परिणाम चीनी पूंजी एवं उत्पादों के खिलाफ शुल्कों से इतर की बाधाओं, जैसे- रक्षा, दूरसंचार, इंटरनेट एवं परिवहन के क्षेत्रों की बड़ी परियोजनाओं की सुरक्षा जांच के रूप में सामने आया है।’

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