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संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून ने अपने अंतिम संबोधन में आज कश्मीर या घाटी की मौजूदा स्थिति का कोई जिक्र नहीं किया, जबकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने विश्व संगठन से बार-बार अनुरोध किया था कि वह भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दा सुलझाने में मदद करे। ‘सामान्य चर्चा’ के उद्घाटन सत्र में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के रूप में अपने अंतिम संबोधन में बान ने सीरिया संकट, फिलिस्तीन मुद्दा, म्यांमार और श्रीलंका की स्थिति तथा शरणार्थी और प्रवासियों के पयालन सहित दुनिया के कई मुद्दे उठाए। उन्होंने कोरियाई प्रायद्वीप और पश्चिम एशिया में तनाव, दक्षिण सूडान में तनाव, हिंसक चरमपंथ और यमन, लीबिया, इराक, अफगानिस्तान से लेकर साहेल और लेक चाड बेसिन तक के क्षेत्रों पर उसके प्रभाव पर चर्चा की। हालांकि, बान ने कश्मीर या घाटी में तनाव पर कुछ भी नहीं बोला। जबकि पाकिस्तान ने बार-बार संयुक्त राष्ट्र से अपील की थी कि वह भारत-पाकिस्तान के बीच इस मुद्दे को सुलझाने में मदद करे। घाटी में पिछले 10 सप्ताह से भी ज्यादा समय से अशांति का माहौल है। महासभा में कल प्रधानमंत्री शरीफ के भाषण का मुख्य मुद्दा कश्मीर रहने की संभावना है। घाटी के उरी में रविवार को सेना के शिविर पर पाकिस्तान स्थित संगठन जैश-ए-मोहम्मद के भारी हथियारों से लैस आतंकवादियों के हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बहुत ज्यादा तनावपूर्ण हो गए हैं। हमले में देश के 18 जवान शहीद हुए हैं। बान के कार्यालय ने बार-बार कहा है कि संयुक्त राष्ट्र प्रमुख कार्यालय कश्मीर मुद्दा सुलझाने के लिए उपलब्ध हैं, यदि भारत और पाकिस्तान दोनों इसके लिए अनुरोध करें।

यह एक स्पष्ट संदेश है कि कश्मीर द्विपक्षीय मुद्दा है और उसे दो देशों को ही सुलझाना चाहिए। शरीफ ने पिछले महीने बान को दो पत्र लिखे और कश्मीर मुद्दे में हस्तक्षेप करने को कहा। विश्व संगठन द्वारा कश्मीर मुद्दा अपने स्तर पर सुलझाने की मांग करते हुए इस्लामाबाद संयुक्त राष्ट्र को कई पत्र लिख चुका है। हालांकि, दुनिया के नेताओं को अपने लंबे और अंतिम संबोधन में बान की-मून ने संयुक्त राष्ट्र के एजेंडा में शामिल विभिन्न मुद्दों की चर्चा करते हुए एक बार भी कश्मीर का जिक्र नहीं किया। अपने संबोधन में बान ने सतत विकास लक्ष्य, जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता, हथियारबंद संघर्ष से सुरक्षा को खतरा तथा उसके प्रतिकूल प्रभावों पर चर्चा की। उन्होंने जिक्र किया कि कैसे हिंसक संघर्ष का दुष्प्रभाव यमन, लीबिया, इराक, अफगानिस्तान, साहेल आदि पर दिख रहा है। वह सीरिया संकट पर भी बोलक, ‘जिसमें सबसे ज्यादा संख्या में लोगों की जान गयी है और भीषण अस्थिरता दिख रही है।’ इस्राइल-फलस्तीन मुद्दे पर बान ने कहा, ‘दो राष्ट्रों के समाधान के स्थान पर एक राष्ट्र के निर्माण का विकल्प, कयामत लेकर आएगा। फलस्तीन को उसका स्वतंत्र और जायज भविष्य देने से इनकार करना, तथा इस्राइल को उसके यहूदी लोकतंत्र के विचार से दूर धकेलना।’ बान का पांच वर्ष का दूसरा कार्यकाल 31 दिसंबर, 2016 को समाप्त हो रहा है।

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