ब्यूनस आयर्स: अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर माइली ने संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के साथ गहरे मतभेदों के कारण अपने देश के विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से अलग होने का एलान किया है। राष्ट्रपति भवन के एक प्रवक्ता ने बुधवार को यह जानकारी दी। माइली की कार्रवाई उनके सहयोगी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कदम से मेल खाती है, जिन्होंने 21 जनवरी को पदभार ग्रहण करने के पहले दिन ही एक कार्यकारी आदेश के जरिये अमेरिका को डब्ल्यूएचओ से बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी।
ब्यूनस आयर्स में संवाददाता सम्मेलन में प्रवक्ता मैनुअल एडोर्नी ने कहा कि अर्जेंटीना का निर्णय ‘‘स्वास्थ्य प्रबंधन में गहरे मतभेदों पर आधारित है, खासकर (कोविड19) महामारी के दौरान।’’ उन्होंने कहा कि उस समय डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों के कारण ‘‘मानव जाति के इतिहास में सबसे बड़ा शटडाउन’’ हुआ था। एडोर्नी ने कहा कि अर्जेंटीना किसी भी अंतरराष्ट्रीय संगठन को अपनी संप्रभुता में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देगा, ‘‘और हमारे स्वास्थ्य क्षेत्र में तो बिल्कुल भी नहीं।’’
अमेरिका ने भी किया था डब्ल्यूएचओ से बाहर होने का फैसला
इससे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले महीने डब्ल्यूएचओ से बाहर होने के लिए कार्यकारी आदेश जारी किया था। उसके बाद अब अर्जेंटीना ने भी डब्ल्यूएचओ से बाहर होने का फैसला किया। मिलेई को ट्रंप का करीबी माना जाता है। ट्रंप ने 20 जनवरी को राष्ट्रपति बनने के बाद पहले ही दिन डब्ल्यूएचओ से बाहर निकलने की घोषणा की थी। मिलेई के मुताबिक, इस कदम के पीछे की वजह डब्ल्यूएचओ के स्वास्थ्य मुद्दों , खासतौर पर कोरोना महामारी, को संभालने के तरीके को लेकर गहरे मतभेद हैं।
'महामारी से सही तरीके से नहीं निपटा डब्ल्यूएचओ'
अर्जेंटीना के राष्ट्रपति के प्रवक्ता मैन्युएल अदोर्नी ने कहा कि मिलेई ने अर्जेंटीना को डब्ल्यूएचओ से बाहर होने का आदेश इस वजह से दिया, क्योंकि पूर्ववर्ती वामपंथी सरकार में देश में कई महीनों का लॉकडाउन लगाया गया था और डब्ल्यूएचओ ने इस महामारी से निपटने के लिए सही तरीके से काम नहीं किया। अदोर्नी ने यह भी कहा कि अर्जेंटीना को डब्ल्यूएचओ से शिकायत है कि यह संगठन अन्य देशों के राजनीतिक असर से स्वतंत्र नहीं है और इसके फैसलों में बाहरी दबाव महसूस होता है। हालांकि, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि ये देश कौन हैं।
अर्जेंटीना ने यह भी स्पष्ट किया कि वह किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन को अपनी संप्रभुता में दखल देने की अनुमति नहीं देगा, खासतौर पर स्वास्थ्य संबंधी मामलों में तो बिल्कुल भी नहीं।
डोनाल्ड ट्रंप ने भी लगाया था विश्व स्वास्थ्य संगठन पर आरोप
ट्रंप ने भी डब्ल्यूएचओ पर कोरोना महामारी और अन्य वैश्विक संकटों को सही तरीके से न संभाल पाने का आरोप लगाया था। उनकी कहना था कि डब्ल्यूएचओ अमेरिका से अत्यधिक और अन्यापूर्ण तरीके से फंडिंग की मांग करता था, जबकि अमेरिका ही इसकी फंडिंग का सबसे स्रोत है।डब्ल्यूएचओ संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष स्वास्थ्य एजेंसी है, जो कोरोना महामारी, इबोला, एड्स और मंकीपॉक्स जैसी वैश्विक बीमारियों की निगरानी के लिए जिम्मेदार है।