नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि कर्नाटक को कल से 27 सितंबर तक तमिलनाडु के लिए कावेरी नदी का छह हजार क्यूसेक पानी प्रतिदिन छोड़ना होगा। शीर्ष अदालत ने निगरानी समिति द्वारा निर्धारित जल की मात्रा में तीन हजार क्यूसेक की बढोत्तरी की। शीर्ष अदालत ने दोनों राज्यों को कावेरी निगरानी समिति के कल के उन निर्देशों के खिलाफ आपत्ति दर्ज कराने की भी आजादी दी जिसमें कर्नाटक से तमिलनाडु को 21 से 30 सितंबर तक प्रतिदिन तीन हजार क्यूसेक पानी छोड़ने को कहा गया था। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने केन्द्र को निर्देश दिया कि कावेरी जल विवाद निपटारा न्यायाधिकरण (सीडब्ल्यूडीटी) के फैसले के निर्देश के अनुरूप चार हफ्तों में कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड (सीडब्ल्यूएमबी) का गठन किया जाए। पीठ ने केन्द्र को सुनवाई की अगली तारीख पर उसके सामने वह अधिसूचना रखने का निर्देश दिया जिससे पता चले कि सीडब्ल्यूएमबी का गठन किया गया है। पीठ ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो शीर्ष अदालत द्वारा सीडब्ल्यूएमबी को और निर्देश दिये जा सकते हैं। पीठ ने केन्द्र की ओर से पेश एएसजी पिंकी आनंद ने कहा, ‘दोनों राज्य कब तक लड़ते रहेंगे? यह विवाद वर्ष 1894 से है। कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड (सीडब्ल्यूएमबी) एक विशेषज्ञ संस्था है और इसके गठन की जरूरत है। चूंकि पहले कभी समस्या नहीं आई, इसका मतलब यह नहीं कि समस्या भविष्य में कभी नहीं आएगी।’ शीर्ष अदालत ने इस तथ्य पर संज्ञान लिया कि निगरानी समिति के सामने राज्यों के बीच आमसहमति नहीं बनी और केन्द्रीय जल संसाधन सचिव एवं समिति के अध्यक्ष शशि शेखर ने अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए कर्नाटक से तमिलनाडु को प्रतिदिन तीन हजार क्यूसेक जल छोड़ने को कहा।
कर्नाटक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एवं प्रसिद्ध न्यायविद एफएस नरीमन ने निगरानी समिति के आदेश का विरोध किया और कहा कि राज्य इस आदेश से प्रभावित है। नरीमन ने कावेरी जल छोड़ने के लिए किसी अंतरिम व्यवस्था का विरोध करते हुए कहा, ‘हम अपनी पेयजल जलापूर्ति से तमिलनाडु को पानी नहीं दे सकते।’ तमिलनाडु की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नाफडे ने भी निर्देश का विरोध किया और कहा कि निगरानी समिति ने आदेश देते हुए सभी पहलुओं पर विचार नहीं किया। उन्होंने कहा कि समिति ने इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि यह बारिश की कमी वाला साल है और छोड़े जाने वाले जल की मात्रा उसी के अनुसार होनी चाहिए। करीब दो घंटे चली सुनवाई के दौरान दोनों राज्यों ने इस मामले में मजबूती से दलीलें दीं और कर्नाटक ने कहा कि बेंगलुरू की पेयजल आपूर्ति में कटौती करके सिंचाई उद्देश्यों के लिए तमिलनाडु को जल देना मुश्किल होगा। उधर, तमिलनाडु ने कहा कि कर्नाटक की तरफ से यह गलत है कि वह यह स्वीकार करना नहीं चाहता कि यह सामान्य वर्ष नहीं है और बारिश में 46 प्रतिशत की कमी है। नरीमन ने पीठ से अनुरोध किया कि या तो मामले को सभी तथ्यों पर उचित ढंग से विचार के लिए फिर से निगरानी समिति के पास भेजा जाए या तमिलनाडु को समिति के फैसले पर आपत्ति वाली याचिका दायर करने दीजिए जो सीडब्ल्यूएमबी के गठन का अस्थायी व्यवस्था है। शीर्ष अदालत ने 12 सितंबर को दोनों राज्यों से कानून व्यवस्था सुनिश्चित करने को कहा था। उसने कावेरी जल साझेदारी पर अपने पुराने आदेश में संशोधन किया था और कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए 20 सितंबर तक प्रतिदिन 15 हजार क्यूसेक की जगह 12 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिया था।