बंगलूरू: कर्नाटक में पिछले कुछ दिनों से हाई वोल्टेज सियासी ड्रामा चल रहा है। कुछ दिनों के अंदर करीब 15 विधायकों ने राज्य की गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस लेते हुए स्पीकर को त्यागपत्र सौंप दिया। हालांकि स्पीकर ने सभी के इस्तीफे स्वीकर नहीं किए हैं। जिसके बाद यह सियासी उठापटक उच्चतम न्यायालय के दरवाजे पर भी पहुंची। फिलहाल सदन में गुरुवार और शुक्रवार को विश्वास मत पर चर्चा हुई। माना जा रहा है कि सोमवार को कांग्रेस-जेडीएस (जनता दल सेक्युलर) की गठबंधन सरकार विधानसभा में बहुमत साबित करेगी।
इससे एक दिन पहले सरकार को झटका लगा है क्योंकि बसपा विधायक एन महेश ने विश्वास मत के दौरान सदन में उपस्थित न होने का निर्णय लिया है। एन महेश ने कहा, 'मैं मायावती जी के निर्देशानुसार कल कर्नाटक विधानसभा में विश्वास मत में भाग नहीं लूंगा।' विधायक के फैसले से सरकार को इसलिए झटका लगा है क्योंकि वह पहले से ही अल्पमत में आ चुकी है। इस स्थिति में उसके लिए एक-एक वोट बहुत कीमती है। यदि सरकार सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाई तो वह गिर जाएगी। कांग्रेस और जेडीएस सरकार बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं।
इसी बीच विश्वास मत को लेकर राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं। राज्य में सियासी बैठकों का दौर जारी है। कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन के नेताओं ने बैठकें की तो भाजपा प्रदेशाध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा ने भी पार्टी विधायकों से मिलकर कार्ययोजना पर चर्चा की। बताया जा रहा है कि गठबंधन नेता मुंबई में डेरा डाले बैठे बागी विधायकों को मनाने की आखिरी कवायद में जुटे हैं।
शनिवार को येदियुरप्पा ने पत्रकारों से बातचीत में राज्य सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि राज्यपाल के शुक्रवार को ही विश्वास मत प्रक्रिया संपन्न कराने के निर्देश के बावजूद सदन में सरकार ने वक्त जाया किया। येदियुरप्पा ने कहा कि विधायकों को घंटों बोलने दिया गया। उनके पास (सरकार) बहुमत नहीं है और वे सिर्फ समय खराब कर रहे हैं। अब राज्यपाल क्या कार्रवाई करते हैं, यह उन पर ही निर्भर करता है। उन्होंने दावा किया कि गठबंधन के पास 98 विधायक ही हैं जबकि भाजपा विधायकों की संख्या 106 है।