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अहमदाबाद: गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन से पहले भाजपा सरकार को झटका देते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए अनारक्षित श्रेणी के तहत दस फीसदी आरक्षण अध्यादेश को आज रद्द कर दिया। आंदोलनरत पटेल समुदाय को शांत करने के लिए राज्य की भाजपा सरकार ने यह कदम उठाया था। राज्य सरकार ने कहा कि वह हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देगी। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील के आग्रह पर दो हफ्ते के लिए आदेश को स्थगित रखा है ताकि वे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकें। न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति वी.एम. पंचोली की खंडपीठ ने एक मई को जारी अध्यादेश को ‘अनुपयुक्त और असंवैधानिक’ बताते हुए कहा कि सरकार के दावे के मुताबिक इस तरह का आरक्षण कोई वर्गीकरण नहीं है बल्कि वास्तव में आरक्षण है। अदालत ने यह भी कहा कि अनारक्षित श्रेणी में गरीबों के लिए दस फीसदी का आरक्षण देने से कुल आरक्षण 50 फीसदी के पार हो जाता है जिसकी हाई कोर्ट के पूर्व के निर्णय के तहत अनुमति नहीं है।हाई कोर्ट का फैसला ऐसे समय में आया है जब भाजपा सरकार राज्य में मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के इस्तीफे के बाद नया मुख्यमंत्री बनाने वाली है। अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले सत्तारूढ़ दल पाटीदार आरक्षण आंदोलन सहित कई चुनौतियों का सामना कर रहा है।

ईबीएस आरक्षण पर अपने रूख पर कायम रहते हुए भाजपा सरकार ने कहा कि हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ वह उच्चतम न्यायालय जाएगी। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने ईबीसी को बिना किसी अध्ययन या वैज्ञानिक आंकड़े के आरक्षण दे दिया। याचिकाकर्ता दयाराम वर्मा, राजीवभाई मनानी, दुलारी बसारजे और गुजरात अभिभावक संगठन ने अध्यादेश को अलग-अलग चुनौती दी थी। अध्यादेश के तहत अनारक्षित श्रेणी के तहत ऐसे उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दस फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया था जिनके परिवार की वार्षिक आय छह लाख रूपये है। उनकी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई हुई। आदेश पर प्रतिक्रिया जताते हुए स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल ने कहा कि सरकार ईबीसी आरक्षण के प्रावधानों का पालन करेगी और हाई कोर्ट के फैसले को जल्द से जल्द उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगी। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से कहा कि आरक्षण हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है जिसमें इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में अदालत ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय की थी। उन्होंने कहा कि अतिरिक्त दस फीसदी आरक्षण से शैक्षणिक संस्थानों में अनारक्षित श्रेणी के तहत ऐसे उम्मीदवारों की संख्या कम हो जाएगी जिनके परिवार की वार्षिक आय छह लाख रूपये से ज्यादा है। उन्होंने कहा कि प्रावधान से संविधान के अनुच्छेद 46 का उल्लंघन होता है जो राज्य के नीति निर्देशक हैं और इसमें 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण की अनुमति नहीं है। सरकारी वकील ने अदालत से कहा कि आरक्षण वास्तव में ‘सामान्य, खुले, अनारक्षित वर्ग में आगे का वर्गीकरण है’ और यह हाई कोर्ट या संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं है। राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के समक्ष अपने हलफनामे में कहा कि अध्यादेश न तो संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करता है न ही यह हाई कोर्ट के आदेशों के खिलाफ है।

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