अहमदाबाद: यहाँ 28 फरवरी 2002 को शहर के केंद्र में स्थित गुलबर्ग सोसाइटी में हुए नरसंहार मामले में दोषी ठहराए गये लोगों को आज (सोमवार) सजा सुनाए जाने की संभावना है। मामले में जांच करने वाली एसआईटी अदालत ने 02 जून को 24 आरोपियों को दोषी ठहराया था। अभियोजन पक्ष हत्या के आरोप में दोषी ठहराए गए 11 लोगों के लिए फांसी की सजा की मांग करेगा जबकि पीड़ितों के वकील उनके प्रति नरमी बरतने की मांग कर सकते हैं। गत 02 जून को विशेष सीबीआई न्यायाधीश पीबी देसाई ने गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार मामले में 66 आरोपियों में से 24 को दोषी ठहराया था। इस मामले में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी समेत 69 लोगों की हत्या कर दी गई थी। कुल 66 आरोपियों में से छह की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई। 24 दोषियों में से 11 पर हत्या का आरोप लगाया गया है जबकि विहिप नेता अतुल वैद्य समेत 13 अन्य आरोपियों को हल्के अपराधों का दोषी ठहराया गया है। फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा था कि इस मामले में आपराधिक साजिश का कोई साक्ष्य नहीं है और आईपीसी की धारा 120 बी के तहत आरोप हटा दिए थे। जो लोग बरी किए गए हैं उसमें भाजपा के वर्तमान पार्षद बिपिन पटेल, गुलबर्ग सोसाइटी जहां है, उस इलाके के तत्कालीन पुलिस निरीक्षक के जी एर्डा और कांग्रेस के पूर्व पार्षद मेघसिंह चौधरी शामिल हैं। गुलबर्ग सोसाइटी मामले ने पूरे देश को दहला दिया था जब उग्र भीड़ ने अहमदाबाद के केंद्र में स्थित सोसाइटी पर हमला बोल दिया और जाफरी समेत सोसाइटी के लोगों की हत्या कर दी थी।
यह 2002 के गुजरात दंगों के उन नौ मामलों में से एक है जिसकी उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित एसआईटी ने जांच की थी। यह घटना साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एस-6 डिब्बे में गोधरा स्टेशन के निकट आग लगाए जाने के एक दिन बाद हुई थी। 27 फरवरी 2002 को हुए गोधरा कांड में 58 लोगों की हत्या कर दी गई थी। फैसले के बाद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने इस फैसले पर निराशा जाहिर की। उन्होंने कहा कि सबको दंडित किया जाना चाहिए था क्योंकि उन्होंने लोगों की हत्या की और उनकी संपत्ति को नष्ट कर दिया। एसआईटी ने मामले में जिन 66 आरोपियों को नामजद किया है, उसमें से नौ पहले ही सलाखों के पीछे हैं जबकि अन्य जमानत पर बाहर हैं।