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कोलकाता: कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के सभी दुर्गा पूजा पंडालों को कोविड-19 महामारी के मद्देनजर नो-एंट्री जोन घोषित कर दिया है। हाई कोर्ट का यह आदेश राज्य में सबसे बड़े त्योहार से ठीक तीन दिन पहले आया है। हाई कोर्ट का यह आदेश डॉक्टरों की उस चेतावनी के बाद आया है जिसमें उन्होंने कहा है कि अगर दुर्गा पूजा पंडालों में अगर प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो राज्य में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में कम से कम तीन से चार गुना वृद्धि हो सकती है। 

उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्देश देते हुए कहा है कि पंडाल के बाहर बैरिकेड्स लगाने की जरूरत है। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि राज्य के बड़े पंडालों में कम से कम 10 मीटर की दूरी पर बैरिकेड लगाया जाएगा, जबकि छोटे पंडालों के लिए बैरिकेड्स लगाने की दूरी 5 मीटर होगी। 

 

याचिकाकर्ताओं के वकील सब्यसाची चटर्जी ने कहा कि क्लब के सदस्यों को छोड़कर किसी भी आगंतुकों को इस नो-एंट्री जोन के अंदर जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। केवल क्लब के सदस्य जो पूजा का आयोजन कर रहे हैं, वे पंडाल में प्रवेश कर सकते हैं। हालांकि, कोर्ट ने क्लब के सदस्यों की संख्या भी निर्धारित कर दी है जिनको पंडाल में जाने की अनुमति रहेगी। 

छोटे पंडाल में क्लब के 15 संदस्यों की एंट्री रहेगी और बड़े पंडालों में क्लब के 25 मेंबर अंदर जा सकते हैं। कोर्ट ने यह निर्देश दिया है कि पंडाल में जाने वाले सदस्यों के नाम बदले नहीं जाएंगे और उनकी पूरी सूची को लगाना होगा। बता दें कि राज्य में भले ही दुर्गा पूजा की शुरुआत 22 अक्टूबर से हो रहा हो लेकिन रविवार और सोमवार से ही पंडाल लगाने शुरू हो गए थे। 

फोरम फॉर दुर्गोत्सव के एक सदस्य ने कहा कि हमने अभी तक आदेश नहीं देखा है। लेकिन जैसा कि यह हाई कोर्ट का आदेश है, हमें इसे लागू करना होगा। यह हमारे लिए मुसिबत भरा है। क्योंकि कई पंडाल ऐसे होते हैं जिसमें अंदर में सजावट हुई  होती है और लोग देखते हैं। ऐसे में अब उनका मेहनत व्यर्थ जाएगा। उन्होंने कहा कि हमने आगंतुकों के लिए मास्क और हैंड सैनिटाइजर की व्यवस्था की थी। 

एक अनुमान के मुताबिक पूरे पश्चिम बंगाल में 37000 से अधिक सामुदायिक पूजन आयोजित किए जाएंगे। इसमें 2500 तो अकेले कोलकाता में होंगे। राज्य में महिलाओं द्वारा लगभग 1700 पूजन आयोजित किए जाते हैं।

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