पटना: लालू प्रसाद पर लिखी गयी पुस्तक गोपालगंज से रायसीना तक मेरी राजनीतिक यात्रा’ पर राजनीतिक तूफान मचा है। लालू ने यह किताब वरिष्ठ पत्रकार नलिन वर्मा के साथ मिलकर लिखी है, जिसमें कई ऐसे तथ्य अंकित हैं, जिन पर आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गये हैं। इस किताब में दावा किया गया है कि भाजपा के साथ जाने के छह महीने के अंदर ही जदयू महागठबंधन में वापस आना चाहता था। इसके लिए जदयू ने प्रशांत किशोर को अलग-अलग मौकों पर अपना दूत बनाकर लालू के पास पांच बार भेजा था।
प्रशांत किशोर ने हर बार जदयू की 'धर्मनिरपेक्ष' धड़े में वापसी पर लालू प्रसाद को राजी करने की कोशिश की थी, लेकिन लालू प्रसाद ने मना कर दिया था। लालू ने कहा, मेरे मन में कोई कड़वाहट नहीं : अपनी इस पुस्तक में लालू ने लिखा है कि 'प्रशांत किशोर यह जताने की कोशिश कर रहे थे कि अगर मैं जदयू को लिखित में समर्थन सुनिश्चित कर दूं तो वह भाजपा से गठबंधन तोड़कर महागठबंधन में दोबारा शामिल हो जायेगा। हालांकि, जदयू नेतृत्व को लेकर मेरे मन में कोई कड़वाहट नहीं है, लेकिन उस पर से विश्वास पूरी तरह हट चुका है।'
लालू ने अपनी पुस्तक में आगे लिखा है कि 'हालांकि, मुझे नहीं पता कि अगर मैं प्रशांत किशोर का प्रस्ताव स्वीकार कर लेता तो 2015 में महागठबंधन को वोट देने वालों और देश भर में भाजपा के खिलाफ एकजुट हुए अन्य दलों की क्या प्रतिक्रिया होती?'
तेजस्वी, संजय यादव और मनोज झा ने किया समर्थन
इस किताब में किये गये दावे पर लालू प्रसाद के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने कहा कि भाजपा के साथ जदयू के गठबंधन बनाने के छह महीने बाद ही पिता लालू प्रसाद और कांग्रेस के कई नेताओं सहित उनके पास संदेशवाहक के माध्यम से ऐसा संवाद आया था।