नई दिल्ली: भीमा कोरेगांव मामले में सुरेंद्र गडलिंग व अन्य चार आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के लिए 90 दिनों से अतिरिक्त वक्त देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है। महाराष्ट्र सरकार की अर्जी पर कोर्ट ने फैसला सुरक्षित किया। इससे पहले पुणे पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए और वक्त मिल गया था। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई थी। हाईकोर्ट ने पुणे पुलिस को आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिन की मोहलत देने के निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी गडलिंग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। महाराष्ट्र सरकार की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा कि तकनीकी वजह से चार्जशीट दाखिल नहीं हो पाई। अगले दस दिनों में चार्जशीट दाखिल होगी. भीमा कोरेगांव मामले में महाराष्ट्र सरकार की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है जिसमें पुणे पुलिस को आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिन की मोहलत देने के निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया गया था।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में गिरफ्तार वकील सुरेंद्र गाडलिंग और अन्य आरोपियों के मामले में पुणे पुलिस को तगड़ा झटका दिया था। हाईकोर्ट ने आरोप-पत्र पेश करने के लिए पुलिस को दी गई 90 दिन की अतिरिक्त मोहलत के आदेश को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट की एकल बेंच की जस्टिस मृदुला भाटकर ने कहा कि आरोप-पत्र पेश करने के लिए अतिरिक्त समय देना और गिरफ्तार लोगों की हिरासत अवधि बढ़ाने का निचली कोर्ट का आदेश गैरकानूनी है।
हाईकोर्ट के इस आदेश से गाडलिंग और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं की जमानत पर रिहाई का रास्ता खुल गया, लेकिन राज्य सरकार के अनुरोध पर जस्टिस भाटकर ने अपने आदेश पर स्टे लगाते हुए इस पर सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए राज्य सरकार को एक नवंबर तक का समय दिया।
पुणे पुलिस ने गडलिंग के अलावा नागपुर यूनिवर्सिटी की अंग्रेजी की प्रोफेसर शोमा सेन, दलित कार्यकर्ता सुधीर धवाले, सामाजिक कार्यकर्ता महेश राउत और केरल की रहने वाली रोना विल्सन को कोरेगांव-भीमा गांव में 31 दिसंबर 2017 और एक जनवरी 2018 को हुई हिंसा के मामले में 6 जून को गिरफ्तार किया था।