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मुंबई: पुणे के भीमा कोरेगांव में पिछले साल 31 दिसंबर को एलगार परिषद के बाद भड़की हिंसा ‘गहरी साजिश’ का हिस्सा थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इसका विस्तार से जिक्र किया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि पुणे पुलिस की ओर से शुरुआती जांच में जो चीजें सामने आई हैं उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ‘इसके परिणाम कितने गंभीर’ हो सकते थे। हाईकोर्ट के न्यायाधीश बी. पी. धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति एस. वी. कोटवाल की खंडपीठ ने बीते शुक्रवार को माओवादियों से कथित संबंध रखने के आरोपी आनंद तेलतुंबडे की याचिका पर सुनवाई की थी।

तेलतुंबडे ने कोर्ट में याचिका दायर करके कहा था कि भीमा कोरेगांव हिंसा और माओवादियों से उनका कोई संबंध नहीं है। आनंद ने सभी आरोपों से इनकार करते हुए दावा किया था कि उन्हें इस मामले में फंसाया गया है। लिहाजा, मामले में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का आदेश दिया जाए। हालांकि, पीठ ने कार्यकर्ता की याचिका को 21 दिसंबर को खारिज कर दिया जिसका आदेश सोमवार को मिला। अदालत ने कहा कि तेलतुंबडे के खिलाफ अभियोग चलाने लायक पर्याप्त सामग्री है।

जांच के प्रति संतोष जताते हुए अदालत ने कहा कि तेलतुंबडे के खिलाफ लगाए गए आरोप आधारहीन नहीं हैं।

हाईकोर्ट ने रेखांकित किया कि शुरू में पुलिस की जांच एक जनवरी 2018 को हुई हिंसा तक सीमित थी जो पुणे के ऐतिहासिक शनिवारवाड़ा में हुई एलगार परिषद के एक दिन बाद हुई थी। पीठ ने कहा, ‘‘बहरहाल, अब जांच का दायरा कोरेगांव-भीमा घटना तक सीमित नहीं है लेकिन घटना का कारण बनी और बाद की गतिविधियां जांच का विषय हैं। मामले में तेलतुंबडे के खिलाफ आरोप और सामग्री, एक प्रतिबंधित संगठन के सदस्य होने के आरोप से ज्यादा हैं। तेलतुंबडे के प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) से लिंक की जांच की जानी चाहिए।’’

इससे पहले तेलतुंबडे के वकील मिहिर देसाई ने पीठ को बताया था कि पिछले साल 30 और 31 दिसंबर को उनके मुवक्किल गोवा में थे। वह भीमा-कोरेगाव हिंसा के दौरान आसपास मौजूद नहीं थे। वहीं तेलतुंबडे की याचिका का विरोध करते हुए अतिरिक्त लोक अभियोजक अरुणा कामत पाई ने अदालत को पांच पत्र सौंपे। ये पत्र आरोपियों ने कथित कथित तौर पर आपस में लिखे थे। इनमें तेलतुंबडे का नाम सक्रिय भाग लेने वाले सदस्य के तौर पर दर्ज है।

बता दें कि भीमा कोरेगांव हिंसा के बाद 08 जनवरी को पुलिस की ओर से एफआईआर दर्ज की गई थी। इसमें तेलतुंबडे, अरुण फरेरा, वर्नन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, गौतम नवलखा आदि का नाम शामिल था। पुलिस का आरोप है कि हिंसा के लिए माओवादियों ने धन मुहैया कराए थे। वे पूरे देश में जातीय हिंसा कराना चाहते थे। इसमें से तेलतुंबडे के अलावा बाकी आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है।

बॉम्बे हाईकोर्ट खंडपीठ ने कहा कि ‘‘अपराध गंभीर और साजिश गहरी है। इसके बेहद गंभीर प्रभाव हैं। साजिश की प्रकृति और गंभीरता के मद्देनजर यह जरूरी है कि जांच एजेंसी को आरोपी के खिलाफ सबूत खोजने के लिए पर्याप्त मौका दिया जाए।’’

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