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नई दिल्ली: सरकार ने कॉलेजियम की कुछ मांगों को स्वीकार कर लिया है, जिसमें उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए न्यायविदों और वकीलों की संख्या सीमित करने के प्रावधान को हटाने की मांग शामिल है। हालांकि, उसने उस दस्तावेज के कुछ अहम प्रावधानों पर अपना रूख कड़ा कर लिया है, जो उच्चतर न्यायपालिका में नियुक्ति की प्रक्रिया का मार्गदर्शन करता है। सरकार के सूत्रों ने बताया कि मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) के संशोधित मसौदे में सरकार ने इस मांग को मान लिया है कि कितनी संख्या में वकीलों और न्यायविदों की न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति की जानी चाहिए इसकी कोई सीमा नहीं होनी चाहिए। एमओपी शीर्ष अदालत और 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति का मार्गदर्शन करती है। प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर को इस साल मार्च में भेजे गए मसौदा एमओपी में सरकार ने वकीलों और न्यायविदों की नियुक्ति के मुद्दे का उल्लेख किया था। मार्च के मसौदे में कहा गया था कि उच्चतम न्यायालय में तीन न्यायाधीश बार के जाने-माने सदस्यों और अपने-अपने क्षेत्र के जानकार असाधारण विधिवेत्ताओं में से नियुक्त किए जाने चाहिए। कॉलेजियम ने महसूस किया था कि इस सीमा को हटाया जाना चाहिए और सरकार ने इस बात को मान लिया है।

सरकार और न्यायपालिका के एमओपी को अंतिम रूप देने की कोशिश के बीच उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा था कि न्याय प्रदान करने की प्रणाली ‘चरमरा’ रही है और उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायाधीशों और अन्य न्यायाधीशों के तबादले और नियुक्ति के कॉलेजियम के फैसले को लागू नहीं करने के लिए केंद्र को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा था कि वह इन अड़चनों को बर्दाश्त नहीं करेगी और इसे जवाबदेह बनाने के लिए हस्तक्षेप करेगी। न्यायमूर्ति ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था, ‘हम न्यायाधीशों की नियुक्ति में अड़चन को बर्दाश्त नहीं करेंगे। यह न्यायिक कार्य को प्रभावित कर रहा है। हम जवाबदेही तय करेंगे।’ सीजेआई को तीन अगस्त को लिखे पत्र में सरकार ने पदोन्नति के लिए वरिष्ठता के मुख्य योग्यता होने की बात को भी मान लिया है। पहले के मसौदे में सरकार ने योग्यता सह वरिष्ठता पर जोर दिया था। इस मसौदे को सरकार में सर्वोच्च स्तर पर हरी झंडी दी गई है। संशोधित मसौदे में सरकार ने हालांकि इस बात को दोहराया है कि उसके पास कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए किसी नाम को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ और ‘जनहित’ के आधार पर खारिज करने की शक्ति होनी चाहिए। मई में कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से इस प्रावधान को खारिज कर दिया था कि यह न्यायपालिका के कामकाज में हस्तक्षेप है। मार्च के मसौदे में सरकार ने किसी नाम को ठुकराए जाने के बाद फिर से उस नाम को भेजने के कॉलेजियम के प्राधिकार को मंजूरी देने से मना कर दिया था। नये मसौदे में कहा गया है कि सरकार सिफारिश को खारिज करने के कारणों के बारे में कॉलेजियम को सूचित करेगी।

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