ताज़ा खबरें

नई दिल्ली: राज्यसभा में प्रसूति अवकाश (संशोधन) विधेयक गुरुवार को पारित हो गया। इसमें निजी संस्थानों में कार्यरत कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करने का प्रावधान है। यानी बच्चा पैदा होने पर उन्हें साढ़े छह महीने की छुट्टी मिलेगी। इसमें आठ सप्ताह का अवकाश प्रसव से पूर्व का होगा। सरकारी कर्मचारियों को पहले ही यह सुविधा मिली हुई है। शुक्रवार को संसद का आखिरी दिन है और सरकार इसे लोकसभा में पारित कराने की कोशिश कर सकेगी ताकि इसे जल्द से जल्द लागू किया जा सके। राज्यसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्ष के सभी दलों ने सरोगेट मदर को भी इस सुविधा के दायरे में लाने की जोरदार मांग रखी, मगर सरकार ने कहा कि सुझाव पर बाद में विचार किया जाएगा। अभी विधेयक में इस प्रावधान को शामिल करना संभव नहीं। दरअसल, इस विधेयक में यदि कोई महिला सरोगेसी के जरिये बच्चे को प्राप्त करती है तो उसे 12 सप्ताह का अवकाश मिलेगा। लेकिन जिस महिला की कोख में बच्चा पला उसके लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इसी प्रकार यदि तीन महीने के बच्चे को गोद लेने वाली महिला को भी 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश मिलेगा। बसपा के सतीश चंद्र ने यह मामला उठाया जिसका कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत तमाम दलों ने समर्थन किया। लेकिन श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि वे इस सुझावों पर विचार करेंगे। उन्होंने कहा कि महिलाओं को सर्वाधिक मातृत्व अवकाश देने वाला भारत तीसरे नंबर का देश हो गया है।

इससे 18 लाख कामकाजी महिलाओं को बच्चों के लालन-पालन का बेहतर मौका मिलेगा विधेयक में प्रावधान है कि पचास से अधिकारी रखने वाला संस्थान शिशु कक्ष (क्रेच) की स्थापना करेगा जिसमें महिला कर्मी अपने बच्चों को रख सकेंगी। नियोक्ता को दिन में चार बार महिला कर्मचारियों को अपने बच्चे से मिलने की अनुमति देनी होगी। हालांकि विपक्ष का कहना था कि फैक्टरी अधिनियम में ऐसा प्रावधान तीस कर्मचारियों पर है, इसलिए इस अधिनियम में भी यह संख्या 30 ही होनी चाहिए। नियोक्ता की जिम्मेदारी होगी कि नियुक्ति के समय वह महिला कर्मचारी को इस अधिनियम की जानकारी देगा। इसमें प्रसूति अवकाश और लाभों के बारे में जानकारी देनी होगी। जिन संस्थानों में दस से ज्यादा कर्मी कार्य करते हैं, वहां यह प्रावधान लागू होगा। मूलत: ईएसआई की दायरे में आने वाले सभी संस्थान इसके दायरे में होंगे। बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि इस कानून का उल्लंघन करने वाले नियोक्ताओं को जुर्माने के अलावा एक साल तक की सजा का प्रावधान होगा। यदि महिला कर्मचारी का कार्य घर बैठे भी किया जा सकता है तो नियोक्ता के लिए यह आवश्यक होगा कि वह प्रसूति अवकाश सुविधा का लाभ प्राप्त करने के बाद भी महिला को जहां तक संभव हो सके घर से कार्य करने की अनुमति प्रदान करेगा ताकि वह बच्चे की बेहतर देखभाल कर सके। विधेयक के प्रावधानों के अनुसार 26 सप्ताह का मातृत्व अवकाश सिर्फ दो बच्चों के जन्म तक मिलेगा। इसमें छह सप्ताह प्रसव से पूर्व होगा। हालांकि इससे अधिक बच्चे होने पर अवकाश सिर्फ 12 सप्ताह का ही रहेगा। हालांकि सदन में चर्चा के दौरान सदस्यों ने मांग की थी कि दो से अधिक बच्चों के लिए भी इसे बढ़ाया जाना चाहिए। चर्चा में राज्यसभा की महिला सदस्यों ने खूब हिस्सा लिया। मोटे तौर पर इस दौरान जो अन्य मांगे उठी, उनमें मातृत्व अवकाश की सीमा नौ माह से एक साल करने, शादीशुदा महिलाओं को निजी क्षेत्र में रोजगार देने में हो रहे भेदभाव को दूर करने, पुरुषों को भी पितृत्व अवकाश देने ताकि बच्चों के देखरेख की सारी जिम्मेदारी महिलाओं पर नहीं आन पड़े, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, मनरेगा कार्यकर्ताओं तथा असंगठित क्षेत्र की कामकाजी महिलाओं के लिए भी इस प्रकार की प्रसूति लाभ की मांग शामिल है।

  • देश
  • प्रदेश
  • आलेख