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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट को लेकर बुधवार को हुई सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि हम संदेह के आधार पर आदेश जारी नहीं कर सकते हैं। अदालत चुनाव की नियंत्रण अथॉरिटी नहीं है। आपको बता दें कि अदालत ने ईवीएम के मुद्दे पर दो बार दखल दिया है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि हमारे कुछ सवाल थे। जिनके जवाब दे दिए गए हैं। अभी हमने फैसला सुरक्षित रखा है। कोर्ट ने वीवीपैट को लेकर कहा कि अभी तक गड़बड़ी की एक भी रिपोर्ट सामने नहीं आई है। हम साथ में ये भी देख रहे हैं कि क्या ज्यादा वीवीपैट के मिलान का आदेश दिया जा सकता है।

"चुनाव आयोग को कंट्रोल नहीं कर सकते": सुप्रीम कोर्ट

सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता ने प्रशांत भूषण से कहा कि क्या हम संदेह के आधार पर कोई आदेश जारी कर सकते हैं? जिस रिपोर्ट पर आप भरोसा कर रहे हैं, उसमें कहा गया है कि अभी तक हैकिंग की कोई घटना नहीं हुई है। हम किसी दूसरे संवैधानिक अथॉरिटी को नियंत्रित नहीं करते है। हम चुनावों को नियंत्रित नहीं कर सकते।

अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में वीवीपैट की बात कही गई थी और उसका पालन किया गया। लेकिन इसमें कहां कहा गया है कि सभी पर्चियों का मिलान करें। इसमें 5 प्रतिशत लिखा है, अब देखते हैं कि क्या इन 5 प्रतिशत के अलावा कोई उम्मीदवार कहता है कि दुरुपयोग के मामले आए हैं।

कोर्ट ने आगे कहा कि अगर कुछ सुधार की जरूरत है, तो सुधार करेंगे। हमने इस मामले में दो बार दखल दिया। पहले वीवीपैट अनिवार्य करने में और फिर एक से 5 वीवीपैट मिलान के आदेश जारी करके।

सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि इसलिए हमने चुनाव आयोग से भी यही सवाल पूछा था। आयोग का कहना है कि फ्लैश मेमोरी में कोई दूसरा प्रोग्राम फीड नहीं किया जा सकता। उनका कहना है कि वो फ़्लैश मेमोरी में कोई प्रोगाम अपलोड नहीं करते, बल्कि चुनाव चिन्ह अपलोड करते है, जो कि इमेज की शक्ल में होता है। हमे तकनीकी चीजों पर आयोग पर यकीन करना ही होगा।

इस पर प्रशांत भूषण ने दलील दी कि वो चुनाव चिन्ह के साथ साथ कोई ग़लत प्रोगाम तो अपलोड कर सकते हैं। मेरा अंदेशा उस बात को लेकर है। फिर कोर्ट ने कहा कि हम आपकी दलील को समझ गए। हम फैसले में इसका ध्यान रखेंगे।

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