नई दिल्ली: न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में खरीद पर गारंटी समेत तमाम मांगों को लेकर किसान सड़कों पर उतरे हैं। सरकार और किसान नेताओं के बीच चौथे राउंड की बातचीत भी फेल हो गई है। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने केंद्र सरकार के एमएसपी के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। केंद्र सरकार की तरफ से कथित रूप से एमएसपी पर पांच साल के कॉन्ट्रेक्ट का प्रस्ताव दिया गया था। इसे खारिज करते हुए किसानों नेताओं ने कहा कि उन्हें एमएसपी गारंटी से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।
पंजाब और हरियाणा को विभाजित करने वाले शंभू बार्डर पर मुख्यतौर पर धरना देने वाले दो बड़े किसान संगठन हैं। पहला- किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का संगठन संयुक्त किसान मोर्चा। दूसरा- सरबन सिंह पंधेर किसान मजदूर मोर्चा. फिलहाल, सरकार जिन किसान संगठनों से बात कर रही है, वो अलग हैं।
रविवार को चौथे दौर की बातचीत को सरकार और किसान संगठन दोनों ने सकारात्मक बताया। इस मामले के सुलझने की राह में सबसे बड़ी बाधा एमएसपी पर कानून बनाने की बात है।
लेकिन सरकार ने हल निकालने की कोशिश के तहत किसानों को एक प्रस्ताव दिया। प्रस्ताव के अनुसार सरकार मक्का, तूर, अरहर, उड़द और कपास की फसल को एमएसपी पर 5 साल तक खरीदेगी। एनसीसीएफ और नाफेड जैसे को-ऑपरेटिव सोसायटी किसानों के साथ करार करेंगी। खरीद की कोई सीमा नहीं होगी और जल्द ही एक पोर्टल तैयार होगा।
किसान नेताओं ने सोमवार को इस मामले में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने बताया कि मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर उन्हें पता चला है कि केंद्र सरकार एमएसपी पर अध्यादेश लाने की योजना बना रही है। किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि उन्हें एमएसपी गारंटी से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।
सी2+50% के आधार पर एमएसपी गारंटी की मांग
किसान मोर्चा ने कहा कि स्वामिनाथन आयोग ने 2006 में अपनी रिपोर्ट में केंद्र सरकार को सी2+50% के आधार पर एमएसपी देने का सुझाव दिया था। बयान में कहा गया है कि किसान इसी के आधार पर तमाम फसलों पर वह एमएसपी की गारंटी चाहते हैं। इसके जरिए किसान अपनी फसल एक फिक्स्ड कीमत पर बेच सकेंगे और उन्हें नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा।
एसकेएम ने सरकार के प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा, "10000 रुपये किसानों को पेंशन, लोन माफी और बीजेपी सांसद अजय मिश्रा टेनी को बर्खास्त करने पर सरकार का रुख साफ नहीं है। सरकार सभी फसलों की एमएसपी की गारंटी और स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करे।" 21 और 22 फरवरी को एसकेएम की जनरल बॉडी की बैठक है, उसके बाद आगे के कदम पर निर्णय होगा।
बता दें कि अजय मिश्रा 'टेनी' उत्तर प्रदेश की लखीमपुर-खीरी लोकसभा सीट से बीजेपी के सांसद हैं। वह केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हैं। उनका और उनके बेटे का नाम लखीमपुर-खीरी कांड में जुड़ा था।
किसानों का क्या कहना है?
सरकार के इस प्रस्ताव पर शंभू बार्डर पर बैठे किसानों के बीच ज्यादा उत्साह नहीं है। उनका कहना है कि केवल पांच फसल पर नहीं, बल्कि सभी 23 फसलों पर सरकार इस तरह की गारंटी दे। किसानों ने कहा कि पंजाब और हरियाणा में दाल और मक्का की पैदावार नाम मात्र की है, कपास की फसल में लाल सूंडी रोग से अब उसे बो नहीं रहे हैं, तो हमें क्या फायदा है।
सरकार फसलों के विविधीकरण पर दे रही हैं जोर
ग्लोबल वार्मिंग के चलते सरकार फसलों के विविधीकरण पर जोर दे रही है। सरकार का मानना है कि परंपरागत गेंहू धान और गन्ना उगाने में पानी और उर्वरक ज्यादा लगने से किसानों की खेती की लागत बढ़ रही है। इससे वो दूसरी फसल उगाए, जिसमें पानी और उर्वरक कम लगता है। लेकिन किसानों के बीच इसको लेकर कई तरह के असमंजस है।
किसानों का कहना है कि सरकार फसल विविधीकरण की बात करती है। हमने गन्ना लगाया, लेकिन मिलों में भुगतान डेढ़ साल बाद होता है। हरियाणा सरकार ने मक्का या मिलेट्स उगाने के लिए एक स्कीम शुरू की थी। लेकिन इसका फायदा नहीं मिला।
फिलहाल शंभू बार्डर पर शांति है। एक तरफ आंदोलनकारी किसान बैठे हैं। दूसरी तरफ उनको रोकने के लिए पुलिस बल तैनात है। 21 तारीख को किसान संगठन अपना फाइनल रुख बताएंगे। फिलहाल किसान और सरकार दोनों चाहते हैं कि ये मामला शांति से निपट जाए।