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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली एक कथित बलात्कार पीड़िता की याचिका पर केंद्र एवं महाराष्ट्र सरकार से आज प्रतिक्रिया मांगी। याचिका में कानून के उन प्रावधानों को चुनौती दी गई है जो गर्भधारण के 20 सप्ताह बाद गर्भपात कराने पर रोक लगाते हैं, भले ही मां और उसके भ्रूण को जीवन का खतरा ही क्यों न हो। न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कल के लिए नोटिस जारी किया और याचिकाकर्ता से कहा कि वह अटॉर्नी जनरल के कार्यालय के माध्यम से इसकी आज ही तामील कराए। महिला की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि याचिका में चिकित्सकीय गर्भपात कानून, 1971 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है क्योंकि यह गर्भपात की अनुमति के लिए 20 सप्ताह की सीमा तय करता है। न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति अरण मिश्रा भी इस पीठ में शामिल हैं। पीठ ने कहा कि वह महिला की हालत पर चिकित्सकीय बोर्ड की रिपोर्ट मांगेगी। महिला का आरोप है कि उसके पूर्व मंगेतर ने उससे शादी का झूठा वादा करके उसका बलात्कार किया था और वह गर्भवती हो गई। उसने अपनी ताजा याचिका में 20 सप्ताह की सीमा तय करने वाली चिकित्सकीय गर्भपात कानून, 1971 की धारा 3(2)(बी) को निष्प्रभावी किए जाने की मांग की है है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 21 का उल्लंघन है।

याचिका में कहा गया है कि यह तय सीमा अनुचित, मनमानी, कठोर, भेदभावपूर्ण और समानता एवं जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। इसमें केंद्र को यह आदेश देने की मांग की गई है कि वह अस्पतालों को चिकित्सकों के एक विशेषज्ञ पैनल का गठन करने का निर्देश दे। यह पैनल गर्भावस्था का आकलन करे और कम से कम उन महिलाओं एवं लड़कियों के चिकित्सकीय गर्भधारण की व्यवस्था करें जो यौन हिंसा का शिकार हुई हैं और जिन्हें गर्भधारण किए 20 सप्ताह से अधिक हो गए हैं। महिला को गर्भधारण किए 24 सप्ताह हो गए हैं। उसने कहा कि वह एक गरीब पृष्ठभूमि से संबंध रखती है और उसका भ्रूण मस्तिष्क संबंधी जन्मजात विकृति ऐनिन्सफली से पीड़ित है लेकिन चिकित्सकों ने गर्भपात करने से इनकार कर दिया है जिसके मद्देजनर गर्भपात की 20 सप्ताह की सीमा के कारण महिला के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को खतरा है। याचिका में कहा गया है कि एमटीपी अधिनियम के अनुच्छेद पांच में ‘गर्भवती महिला के जीवन की रक्षा’’ की बात की गई है इसमें ‘‘गर्भवती महिला के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा’ करने की बात और उन स्थितियों को भी शामिल किया जाना चाहिए जिनमें गर्भधारण के 20वें सप्ताह के बाद भ्रूण में गंभीर विकारों का पता चलता है। न्यायालय मुंबई के चिकित्सक निखिल डी दातार की याचिका पर पहले ही सुनवाई कर रहा है। दातार ने भी वर्ष 2009 में यही मामला उठाया था और अधिनियम में संशोधन की मांग की थी।

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