नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने विवाहित महिला को 26 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति देने से इंकार किया। कोर्ट ने सोमवार को कहा कि भ्रूण में कोई विसंगति नहीं देखी गई। गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक की हो गई है, इसलिए चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति नहीं दी जा सकती।
शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला का गर्भ 26 सप्ताह और पांच दिन का हो गया है। इस मामले में महिला को तत्काल कोई खतरा नहीं है और यह भ्रूण में विसंगति का मामला नहीं है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ दो बच्चों की मां को 26-सप्ताह का गर्भ समाप्त करने के शीर्ष अदालत के नौ अक्तूबर के आदेश को वापस लेने की केंद्र सरकार की याचिका पर जिरह सुन रही थी। पीठ ने कहा कि महिला की डिलीवरी एम्स में सरकारी खर्च पर होगी। जन्म के बाद माता-पिता को ही आखिरी फैसला लेना होगा कि वह बच्चे को लालन-पालन करना चाहते हैं या फिर किसी को गोद देना चाहते हैं। इसमें सरकार हरसंभव मदद करेगी।
'हम बच्चे को नहीं मार सकते'
पीठ ने गुरुवार को इसी मामले पर सुनवाई करते हुए कहा था कि हम बच्चे को नहीं मार सकते। साथ ही पीठ ने कहा था कि एक अजन्मे बच्चे के अधिकारों और स्वास्थ्य के आधार पर उसकी मां के निर्णय लेने के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने की जरूरत है।
छह अक्तूबर को शीर्ष अदालत के सामने रिपोर्ट प्रस्तुत की
यह मुद्दा उस वक्त उठा, जब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) मेडिकल बोर्ड के एक चिकित्सक ने 10 अक्तूबर को एक ई-मेल भेजा था। इसमें कहा गया था कि इस चरण पर गर्भ गिराने पर भ्रूण के जीवित रहने की प्रबल संभावना है। इससे पहले बोर्ड ने महिला की जांच की थी और छह अक्तूबर को शीर्ष अदालत के सामने रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
क्या है मामला?
मामला न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के पास तब आया, जब बुधवार को दो न्यायाधीशों की पीठ ने महिला को 26-सप्ताह के गर्भ गिराने की अनुमति देने के अपने नौ अक्तूबर के आदेश को वापस लेने की केंद्र की याचिका पर खंडित फैसला सुनाया। कोर्ट ने नौ अक्तूबर को महिला को यह ध्यान में रखते हुए गर्भ को चिकित्सीय रूप से समाप्त करने की अनुमति दी थी कि वह अवसाद से पीड़ित है और भावनात्मक, आर्थिक और मानसिक रूप से तीसरे बच्चे को पालने की स्थिति में नहीं है।