नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एम3एम समूह के कथित मनी लॉन्ड्रिंग केस में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पर सख्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ईडी अपने कामकाज में पारदर्शी और निष्पक्ष रहे, प्रतिशोधी ना बने। आपको देश की आर्थिक सुरक्षा बनाए रखनी है। सुप्रीम कोर्ट ने एम3एम समूह के दो निदेशकों को तत्काल रिहा करने का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की है।
सुप्रीम कोर्ट ने न केवल रियल एस्टेट समूह एम3एम के गिरफ्तार निदेशकों को तुरंत रिहा करने के आदेश दिए हैं बल्कि ईडी पर बड़े सवाल भी उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ईडी कामकाज में ईमानदारी बरते, निष्पक्षता के कड़े मानकों को बनाए रखे और प्रतिशोधी ना बने।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर ईडी किसी को गिरफ्तार करती है तो उसे लिखित में गिरफ्तारी के आधार की कॉपी आरोपी को देनी होगी। कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में रियल एस्टेट समूह एम3एम के गिरफ्तार निदेशकों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने ये फैसला सुनाया है।
एम3एम के दो डायरेक्टरों को ईडी ने जून में किया था गिरफ्तार
दो निदेशकों पंकज और बसंत बंसल को कथित मनी लॉन्ड्रिंग में पूछताछ के लिए 14 जून को बुलाया गया था और दोनों को उसी दिन ईडी द्वारा दर्ज एक अन्य मामले में गिरफ्तार किया गया था। बंसल ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 19 के तहत अपनी गिरफ्तारी को अवैध बताते हुए चुनौती दी और पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश पर सवाल उठाया, जिसने उनकी गिरफ्तारी को रद्द करने से इंकार कर दिया था।
गिरफ्तारी के आधारों की लिखित प्रति नहीं दी
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. दोनों की तत्काल रिहाई का निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले के तथ्य दिलचस्प हैं क्योंकि ईडी अधिकारी द्वारा आरोपियों को गिरफ्तारी के आधारों की लिखित प्रति दिए बिना मौखिक रूप से पढ़ा गया, जिस पर गंभीर आपत्ति है। यह ईडी के बारे में बहुत कुछ कहता है और उनकी कार्यशैली पर खराब असर डालता है, खासकर तब जब एजेंसी पर देश की वित्तीय सुरक्षा को संरक्षित करने की जिम्मेदारी है।
पीठ ने कहा कि ईडी को पारदर्शी होना चाहिए। बोर्ड से ऊपर होना चाहिए, निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा के प्राचीन मानकों के अनुरूप होना चाहिए और अपने रुख में प्रतिशोधी नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश के लिए मानदंड निर्धारित किया
अदालत ने आरोपियों की गिरफ्तारी के आधार की आपूर्ति के लिए ईडी द्वारा अपनाई गई किसी सुसंगत या समान प्रथा की कमी पर भी गौर किया। पूरे देश के लिए मानदंड निर्धारित करते हुए पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी के समय आरोपी को गिरफ्तारी के आधार की कॉपी प्रदान करना जरूरी होगा। अदालत ने माना कि ऐसा अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है क्योंकि यह आरोपी को गिरफ्तारी के लिखित आधार पर कानूनी सलाह लेने में सक्षम बनाता है।
ईडी का गुप्त आचरण संतोषजनक नहीं
कोर्ट ने बंसल की गिरफ्तारी को रद्द कर दिया और कहा कि ईडी के जांच अधिकारी ने केवल गिरफ्तारी के आधार को पढ़ा। यह संविधान और पीएमएलए की धारा 19(1) के आदेश को पूरा नहीं करता है। आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई में ईडी का गुप्त आचरण संतोषजनक नहीं है क्योंकि इसमें मनमानी की बू आती है।