नई दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस साल एकीकृत चिकित्सा प्रवेश परीक्षा, एनईईटी के दायरे से राज्य बोर्डों को बाहर रखने के लिए मोदी सरकार के अध्यादेश पर कानूनी सलाह मांगी है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रपति ने अध्यादेश पर स्पष्टीकरण मांगा है। साथ ही कहा कि कुछ सवालों पर वह विधि विशेषज्ञों से मशविरा कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि शुक्रवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर अध्यादेश का मकसद उच्चतम न्यायालय के फैसले को आंशिक तौर पर टालना है जिसमें कहा गया था कि सभी सरकारी कॉलेज, डीम्ड विश्वविद्यालय और निजी मेडिकल कॉलेज एनईईटी के दायरे में आएंगे। क्या यह छूट केवल राज्य सरकार की सीटों के लिए है, सरकारी सूत्रों ने कहा था कि निजी मेडिकल कॉलेजों में चिन्हित राज्य की सीटों को भी छूट है। एक बार अध्यादेश जारी होने पर राज्य सरकारी बोर्डों के छात्रों को 24 जुलाई को एनईईटी में नहीं बैठना होगा। सरकारी सूत्रों ने बताया कि हालांकि उन्हें अगले शैक्षणिक सत्र से एकीकृत प्रवेश परीक्षा का हिस्सा बनना पड़ेगा। गौरतलब है कि नीट पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का कई राज्यों ने विरोध किया है। इसी के बाद इस मामले को लेकर विशेष आदेश लाने की बात कही गई जिसे शुक्रवार सुबह कैबिनेट की मंज़ूरी मिल गई।
उधर याचिकाकर्ताओं के वकील अमित कुमार ने कहा है कि कैबिनेट के इस अध्यादेश के खिलाफ वह 24 जुलाई से पहले सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। इन सबके बीच अरविंद केजरीवाल ने अध्यादेश के खिलाफ पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है। उनका आरोप है कि कई नेता निजी मेडिकल कॉलेजों में गोरखधंधा कर रहे हैं और ऐसे में नीट पर अध्यादेश देश के खिलाफ होगा। केजरीवाल ने चिट्ठी में यह भी कहा है कि अध्यादेश लाने का मतलब है कि सरकार काला धन रखने वालों के साथ है। इससे पहले बुधवार 18 मई को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने प्रधानमंत्री से मुलाक़ात के बाद इस मामले पर ट्वीट किया था कि 'मैंने नरेन्द्र मोदी जी से इसका समाधान निकालने की गुज़ारिश की और इस पर जल्द फ़ैसला करने को लेकर उनके सकारात्मक रुख़ के लिए मैं उनका शुक्रगुज़ार हूं।' गौरतलब है कि कई राज्य नीट पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ हैं। सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि 2016-17 से एमबीबीएस, बीडीएस के लिए नीट परीक्षा का आयोजन किया जाए।