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संविधान ने देश में बदलाव लाने में उल्लेखनीय मदद की: सीजेआई खन्ना

नई दिल्‍ली: कांग्रेस ने आज (रविवार) कहा कि 2008 के मालेगांव बम धमाके के मामले में एनआईए की ओर से दाखिल आरोप-पत्र ने आतंकवाद से मुकाबला करने की भारत की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े कर दिए हैं । कांग्रेस ने मांग की कि इस मामले की जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट को करनी चाहिए । विपक्षी पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट को मामले की निगरानी करने दें और इस पर अपने संवैधानिक शपथ का मान रखें । वरिष्ठ कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि एनआईए का मतलब अब ‘नमो इंवेस्टिगेटिव एजेंसी’ हो गया है । उन्होंने यह भी कहा कि लगता है आरोप-पत्र का मकसद दिवंगत हेमंत करकरे की अगुवाई वाली मुंबई एटीएस की ओर से की गई ‘‘कुशल’’ जांच को ‘‘नुकसान पहुंचाना और पूरी तरह खत्म कर देना’’ है । शर्मा ने दावा किया कि एनआईए ने मकोका के तहत लगाए गए आरोप सिर्फ इस मंशा से हटाए ताकि एटीएस की ओर से दर्ज किए गए सभी बयान ऐसे हो जाएं कि उन्हें सबूतों के तौर पर स्वीकार ही न किया जाए । कांग्रेस नेता ने मांग की कि एनआईए की ओर से ‘‘अचानक अपना रूख पलट लेने’’ के कारण साध्वी प्रज्ञा सहित छह आरोपियों को मिली क्लीन चिट और बाकी आरोपियों के खिलाफ मकोका के तहत लगाए गए आरोप वापस ले लिए जाने से मामले के ‘‘कमजोर’’ होने के मद्देनजर मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होनी चाहिए । मालेगांव मामले में कांग्रेस ने सरकार पर एक बड़ा हमला बोला है। कांग्रेस का कहना है कि मालेगांव के आरोपियों को बचाने में ख़ुद प्रधानमंत्री दफ्तर लगा हुआ है। कांग्रेस ने कर्नल पुरोहित की तरफ से लिखी एक चिठ्ठी पेश कर इस मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की भूमिका पर भी सवाल उठाया है।

कांग्रेस के मुताबिक़, मालेगांव धमाकों के एक आरोपी कर्नल पीएस पुरोहित ने 6 जनवरी को ये चिट्ठी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को लिखी। इसमें उसने 2008 के मालेगांव धमाके में अपने ऊपर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया। कांग्रेस का आरोप है कि पुरोहित ने डोभाल से गुज़ारिश की कि एनआईए की ओर से अंतिम चार्जशीट दाखिल होने से पहले वो मामले में दखल दें। कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता आनंद शर्मा कहते हैं कि पुरोहित की इसी चिठ्ठी के बाद मालेगांव धमाके के अभियुक्तों को बचाने की कोशिश ने तेज़ी पकड़ी। वे पीएमओ पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि 'पीएमओ में एनएसए की अगुवाई में एक डर्टी ट्रिक डिपार्टमेंट काम करता है। 6 जनवरी को एनएसए को चिठ्ठी मिलती है उसके बाद ही बोल्ट की गति से फाइल चलने लगती है, जबकि अमूमन सरकारी फाइलें इस तेज़ी से चलती नहीं।' इस चिठ्ठी को पेश कर कांग्रेस एक बार फिर ये जताने की कोशिश कर रही है कि मालेगांव मामले के आरोपियों को बचाने की कोशिश में सरकार में बिल्कुल ऊपर बैठे लोग शामिल हैं, क्योंकि बीजेपी ने इस चिठ्ठी की प्रामाणिकता पर अब तक कोई सवाल नहीं उठाया है, लेकिन आरोप लगा रही कांग्रेस का मनोबल बढ़ा हुआ है। कांग्रेस प्रवक्ता आरपीएन सिंह पूछ रहे हैं कि 'आख़िर ऐसे कितने आतंकवादी हैं जो सीधे एनएसए को चिठ्ठी लिख कर मदद की गुहार लगाते हैं और एनएसए उस पर दस्तख़त कर उसे गृह मंत्रालय को भेज देते हैं? क्या ये सरकार आतंकवादियों की सुनेगी या करकरे जैसे देशभक्त की, जिन्होने आतंकवादियों के खिलाफ सबूत जुटाए?' मालेगांव मामले में पिछले ही हफ्ते एनआईए ने साध्वी प्रज्ञा समेत 6 अभियुक्तों के खिलाफ केस चलाने के लिए सबूत नाकाफ़ी बताए हैं। हालांकि जिन अभियुक्तों को क्लीनचिट दी गई, उनमें अभी कर्नल पुरोहित शामिल नहीं है, लेकिन पूरे केस से मकोका हटा लिए जाने का फ़ायदा उसे भी मिल सकता है। कांग्रेस आरोप लगा रही है कि अभियुक्तों को बचाने में प्रधानमंत्री कार्यालय शामिल है। हालांकि बीजेपी इस आरोप को बे-सिर पैर का बता रही है। बीजेपी प्रवक्ता नलिन कोहली के मुताबिक़ जांच एजेंसियां अपना काम कर रही हैं और अंतिम फैसला अदालत से आना है। वे पूछते हैं कि क्या कांग्रेस को देश की अदालतों पर भरोसा नहीं है जो इस तरह के आरोप लगा रही है? कांग्रेस की मांग है कि मालेगांव मामले से जुड़े तमाम दस्तावेज़ों और कागज़ात को सुप्रीम कोर्ट अपने कब्ज़े में लेकर जांच करे। प्रधानमंत्री इस पर अपनी चुप्पी तोड़ें और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच कराने का आदेश जारी करें। एनआईए की तरफ से एटीएस की जांच पर सवाल उठाने को कांग्रेस शहीद करकरे का अपमान बता रही है। कह रही है कि जिस शख्स की देश की सेवा में अपना जान न्योछावर कर दी, उसे ये सरकार कलंकित करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस की मांग है इस तरह की कोशिश के लिए प्रधानमंत्री शहीद करकरे की पत्नी से माफ़ी मांगे।

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