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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सूखे जैसी स्थिति में मनरेगा योजना के तहत काम के बदले भुगतान में देरी के लिए मजदूरों को मुआवजा नहीं देने पर केन्द्र की निंदा की और कहा कि वह ‘कल्याणकारी राज्य के लिए उपयुक्त नहीं’ है क्योंकि ‘सामाजिक न्याय पर आंखें मूंद ली गई हैं।’ शीर्ष अदालत ने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार के पास मजदूरों को मुआवजा देने के लिए कोई प्रावधान नहीं है और यह भी पछतावे वाली बात है कि उसने मामले के लंबित रहने के दौरान 2015-16 के लिए बकाया राशि को मंजूरी दी। न्यायमूर्ति एमबी लोकुड़ और न्यायमूर्ति एनवी रमण की पीठ ने कहा, ‘एक मजदूर बकाया मजदूरी के भुगतान में देरी के लिए 0.05 प्रतिशत प्रति दिन की दर से मुआवजे का हकदार है। हमें यह बताते हुए बहुत दुख है कि भारत सरकार ने वर्ष 2015-16 के लिए 7983 करोड़ रूपये की मजदूरी जारी करते हुए इस मुआवजे के लिए कोई प्रावधान नहीं किया है।’ पीठ ने कहा, ‘यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है और यह निश्चित रूप से किसी भी स्थिति में कल्याणकारी राज्य के रूप में उचित नहीं है, वह भी सूखे की स्थिति में। भारत सरकार ने सामाजिक न्याय पर आंखें मूंद ली हैं।’ केन्द्र ने शीर्ष अदालत के सामने स्वीकार किया कि 31 मार्च 2016 तक मनरेगा योजना के तहत बकाया राशि करीब 7983 करोड़ रूपये थी।

हालांकि बाद में केन्द्र ने अप्रैल में अपने हफलनामे में कहा कि एक सप्ताह के अंदर राज्यों को 11030 करोड़ रूपये जारी किये जाएंगे जो दस सूखा प्रभावित राज्यों के 2723 करोड़ रूपये सहित बकाया राशि को निपटाएंगे। इन राज्यों में मजदूरों को अतिरिक्त 50 दिन का रोजगार दिया गया है।

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