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नई दिल्ली: संसद के सोमवार से शुरू हो रहे सत्र के हंगामेदार होने की संभावना है और उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने को लेकर विपक्षी दलों के सरकार को घेरने का अनुमान है। हालांकि सरकार भी इससे निपटने की पूरी तैयारी में है। सरकार ने सत्र के लिए भारी एजेंडा तय किया है जिसमें लोकसभा में 13 विधेयक और राज्यसभा में 11 विधेयक पारित कराना शामिल है। सरकार के नेताओं में इस बात को लेकर आम सहमति है कि शुरुआती कुछ दिनों में जीएसटी जैसे विवादित मुद्दों को आगे बढ़ाना संभव नहीं होगा। वामदल, जदयू और अन्य विपक्षी दलों के समर्थन से कांग्रेस उत्तराखंड और अरूणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने को लेकर केन्द्र को घेरने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने इसे संघीय ढांचे पर हमला करार दिया। कांग्रेस सरकारों या इसके या अन्य विपक्षी दलों के समर्थन की सरकारों के केन्द्र में सत्ता में होने पर राष्ट्रपति शासन लागू करने की घटनाओं का राजग सरकार द्वारा हवाला देते हुए इस हमले का जवाब देने की संभावना है। सरकारी सूत्रों ने दावा किया कि वर्ष 1951 से देश में 111 बार राष्ट्रपति शासन लागू हुआ है जिसमें से 91 बार राष्ट्रपति शासन तब लागू हुआ है जब भाजपा या राजग सत्ता में नहीं थे। लोकसभा अध्यक्ष ने संसद की सुचारू कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए रविवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। यह सत्र ऐसे समय शुरू हो रहा है जब उत्तराखंड राजनीतिक संकट को लेकर विवाद पैदा हो गया है और 10 राज्यों में सूखे जैसी स्थितियां हैं।

कई विपक्षी दलों ने उत्तराखंड मुद्दे पर सत्र के पहले दिन प्रश्नकाल को निलंबित करने के लिए नोटिस दिया है और पहले सप्ताह में सूखे पर चर्चा की मांग की है। सत्र में 15 बैठकें होंगी जिनमें 90 घंटे कामकाज होगा। इनमें 52 घंटे सरकारी कामकाज के लिए होंगे। उत्तराखंड मसले पर चर्चा की संभावना पर पूछे गये सवाल के जवाब में संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने कहा, 'लोकसभाध्यक्ष को इस पर फैसला करना है। मेरी जानकारी के अनुसार, मामला अदालत के समक्ष है और जब मामला अदालत में लंबित है और फैसला अभी आना है तो इस पर चर्चा के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।' लंबे समय से लंबित जीएसटी विधेयक के बारे में उन्होंने कहा, 'मैं आश्वस्त हूं कि रिपोर्ट आएगी और हम इसे लाने के लिए तैयार हैं।' दूसरे संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, 'हम कांग्रेस और विपक्ष से रचनात्मक और सकारात्मक रुख की उम्मीद कर रहे हैं। हमारा प्रयास है कि सदन सुचारू रूप से और रचनात्मक तरीके से ठंडे माहौल में चले।' उत्तराखंड मुद्दे पर उन्होंने कहा कि कांग्रेस को अपने ही इतिहास का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उसने विगत में जब कोई संवैधानिक संकट नहीं था, लोकप्रिय बहुमत वाली सरकार को बर्खास्त किया गया था। उन्होंने कहा, 'अगर कांग्रेस मुद्दा उठाना चाहती है तो उसे अपने ही इतिहास का सामना करना पड़ेगा क्योंकि कांग्रेस की सरकारों ने कम से कम 88 बार अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल किया। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने कार्यकाल में 50 बार इसका इस्तेमाल किया।' बैठक में राकांपा के तारिक अनवर, अन्नाद्रमुक के पी वेणुगोपाल, लोजपा के रामचंद्र पासवान, तेदेपा के टी नरसिंहम, शिवसेना के आनंदराव अडसुल, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी, आईएनएलडी के दुष्यंत चौटाला, बीजद के भर्तृहरि महताब और आईयूएमल के ई अहमद ने भी भाग लिया।

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