नई दिल्ली: विधि आयोग के नवनियुक्त अध्यक्ष न्यायमूर्ति बलबीर सिंह चौहान ने जेएनयू विवाद के बाद चर्चा के केंद्र में आए राजद्रोह कानून के बारे में कहा है कि उस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है लेकिन पैनल बिना संबंधित पक्षों को सुने किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचेगा। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ने कहा, ‘वाकई, इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। हमें नहीं मालूम कि समस्या क्या है, मुश्किलें क्या हैं। हम सभी पक्षों की सुनेंगे, फौजदारी वकीलों से परामर्श करेंगे।’ उन्होंने कहा कि हाल ही में पुनर्गठित 21वां विधि आयोग राजद्रोह से संबंधित भादसं की धारा 124 ए से जुड़ी मुश्किलों को समझने से पहले किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता। उन्होंने कहा, ‘मुश्किलें क्या हैं, उस पर पुनर्विचार की जरूरत क्यों है, क्या परिभाषा को बदलने की कोई जरूरत है। और तब ही हम रिपोर्ट देंगे। हम एकदम किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते।’ न्यायमूर्ति चौहान ने कहा कि आयोग के लिए प्राथमिकता आपराधिक न्याय प्रणाली की समग्र समीक्षा पर रिपोर्ट तैयार करना होगा जिसमें भारतीय दंड संहिता (भादसं), अपराध दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), और साक्ष्य कानून पर पुनर्विचार शामिल होगा।
भादसं और सीआरपीसी केंद्रीय गृह मंत्रालय के दायरे में है जबकि साक्ष्य कानून कानून मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है। न्यायमूर्ति चौहान ने कहा कि सरकार ने नफरत भरे भाषण, लिव इन रिलेशन, पीड़ितों के अधिकार समेत विविध मुद्दे तथा आपराधिक न्याय प्रणाली की समग्र समीक्षा समेत कई मुद्दों की सूची विचारार्थ आयोग को दिए हैं। उन्होंने कहा, ‘हम मुद्दों को एक एक कर अपने हाथ में लेंगे अन्यथा रिपोर्ट सौंपना मुश्किल हो जाएगा।’