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(आशु सक्सेना): मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनाव के लिए मतगणना आज यानि 3 दिसंबर रविवार को लगभग पूरी हो गई है। देश में अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले हो रहे इन राज्यों के विधानसभा चुनाव को सेमीफाइनल मुकाबले के रूप में देखा जा रहा था। जिसमें केंद्र की सत्ता पर दस साल से काबिज बीजेपी ने परचम फहराया है। चार में से तीन राज्यों में भाजपा ने जीत दर्ज की है। जबकि के एकमात्र सूबे तेलंगाना में क्षेत्रीय दल बीआरएस को कांग्रेस सत्ता से बेदखल करने में कामयाब रही है।

एग्ज़िट पोल के आंकलन के विपरित भाजपा ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से सत्ता छीन ली है। जबकि अधिकांश एजेंसियां इस सूबे में कांग्रेस की जीत का दावा कर रहीं थी। कमोबेश ऐसे ही नतीज़े मध्यप्रदेश में भी देखने को मिले हैं। इस सूबे में बीजेपी ने उम्मीद से बहुत बेहतर जीत दर्ज की है। लेकिन बीजेपी की इस जीत के लिए पीएम मोदी से कहीं ज्यादा लोकप्रियता सीएम शिवराज सिंह चौहान की बतायी जा रही है। वहीं राजस्थान में भी कांगेस 2013 की हार से कहीं बेहतर प्रदर्शन के बावजूद रिवाज़ को बदलने में कामयाब नहीं हुई है।

 (आशु सक्सेना) अगले साल के शुरू में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे कल यानि 03 दिसंबर 2023 को सामने आ जाएंगे। पांच सूबों के चुनाव पीएम मोदी के लिए उनकी तीसरी पारी के सेमी फाइनल माने जा रहे हैं। दरअसल, इन पांच राज्यों के चुनाव नतीजे यह तय करेंगे कि पीएम मोदी अपनी तीसरी पारी में 15 अगस्त 2024 को लालकिले की प्राचीर से तिरंगा फेराएंगे या नहीं?

यूं तो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इन राज्यों खासकर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा पीएम मोदी के पहले कार्यकाल में भी सत्ता से बेदखल हो गयी थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी अपनी स्थापित लोकप्रियता को बरकरार रखने में कामयाब रहे थे। इन तीनों राज्यों में सत्तारूढ़ कांग्रेस को जबरदस्त झटका लगा था। पीएम मोदी तीनों ही राज्यों में 2014 से बेहतर प्रदर्शन करने में कामयाब हुए थे। जबकि तीनों ही राज्यों में सत्तारूढ़ कांग्रेस लोकसभा चुनाव में अपना खाता खोलने के लिए भी तरस गई थी। पीएम मोदी ने तीनों राज्यों की लगभग सभी लोकसभा सीटें जीती थीं।

(संजय कुमार): तेलंगाना में रायतु बंधु योजना को लेकर बवाल भले ही फिलहाल थम गया हो, लेकिन यहां के लोग यही सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर चुनाव आयोग ने रायतु बंधु योजना की रकम बांटने का आदेश देकर वापस क्यों ले लिया? क्या इसमें केवल चुनाव की आदर्श आचार संहिता का मामला था या फिर रकम के बंटवारे का पहले आदेश देने और फिर अपने ही आदेश को वापस लेने का लिए एक बहाना ढूंढा गया। क्योंकि चुनाव आयोग ने जिस लचर दलील के साथ इस योजना के तहत किसानों के खाते में दूसरी किस्त के 7300 करोड़ के बंटवारे का आदेश दिया था, उससे भी ज्यादा लचर दलील के साथ अपने ही आदेश को वापस ले लिया। जो लोगों के मन में भारी संदेह पैदा कर रहा है। लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि तेलंगाना में केसीआर की रायतु बंधु योजना बैकफायर कर गई है।

आज से 4 दिन पहले यानि 24 नवंबर को चुनाव आयोग ने अति उत्साह और जोश में रायतु बंधु योजना के तहत 65 लाख किसानों के खाते में डीबीटी के माध्यम से 7300 करोड़ रुपये चुनाव से ठीक पहले, यानि 28 नवंबर तक भेजने की मंजूरी राज्य सरकार को दी थी। तो फिर चुनाव आयोग ने अपना आदेश वापस क्यों ले लिया?

(आशु सक्सेना) पिछड़ों मे मंड़ल मसीहा माने-जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की आदमकद प्रतिमा का चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एवं द्रमुक अध्यक्ष एमके स्टालिन ने सोमवार को अनावरण किया। उन्होंने यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री व सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को मुख्य अतिथि के रूप आमंत्रित किया। दक्षिण के राज्य तमिलनाडु में आयोजित यह कार्यक्रम तेजी से चर्चाओं में आ गया है। अनावरण के दौरान सीएम स्टालिन ने वीपी सिंह को पिछड़े वर्ग का हीरो बताया, लेकिन इसी वर्ग के 'इंडिया' गठबंधन के अन्य नेता खासतौर पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं थे। इसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं, इस कार्यक्रम को क्षेत्रीय दलों के गैर कांग्रेसी तीसरे मोर्चे की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है।

दरअसल, 'इंडिया' गठबंधन के सूत्रधार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मानना है कि कांग्रेस को केंद्र में रखकर भाजपा खासकर पीएम मोदी विरोधी मोर्चे की कल्पना नहीं की जा सकती, जबकि गठबधन के अन्य कई दल कुछ नीतियों को लेकर कांग्रेस के भी विरोधी हैं।

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