सहारनपुर: देवबंद स्थित दारुल उलूम के मोहतमिम मौलाना अबुल कासिम नौमानी ने कहा कि इस बार सब्र और रहमतों का महीना रमजान शरीफ कोरोना संकट काल में आ रहा है। मुसलमानों को और भी ज्यादा सब्र का परिचय देते हुए इस माह में सारी इबादत घर पर ही रहकर करनी होगी। देवबंद स्थित दारुल उलूम के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी ने अपील की है कि माहे रमजान में लॉकडाउन का पालन किया जाए। कोई भी ऐसा काम न किया जाए जो कि अपने या दूसरों के लिए परेशानी का सबब बने। कानून का उल्लंघन कर मस्जिदों में जाने की कोशिश न करें। प्रशासन की तरफ से मस्जिद में जितने लोगों की इजाजत हो, वह ही मस्जिद में तरावीह (रमजान की विशेष नमाज) अदा करें। बाकी सभी अपने घरों में नमाज व तरावीह पढ़ें।
मस्जिदों में न करें इफ्तार
दारुल उलूम के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी ने अपील की है कि मस्जिदों में इफ्तार की कोई व्यवस्था न की जाए। साथ ही इफ्तार पार्टी वगैरह भी न की जाए। मस्जिदों से एलान कर लोगों को इफ्तार और सहरी के समय की जानकारी दी जाए।
सामान की खरीदारी को घरों से न निकलें
कोरोना के प्रकोप के कारण लागू लॉकडाउन के समय खाने-पीने के सामान की खरीदारी के लिए प्रशासन की ओर से तय किए गए नियमों का पालन किया जाए। घरों से बाहर न निकलें। अपने बच्चों पर पूरी तरह पाबंदी रखें। उन्हें भी घर से बाहर न निकलने दें।
यह है रोजा
देवबंद स्थित दारुल उलूम के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी के मुताबिक रोजे को अरबी भाषा में सौम कहते हैं। इसके मायने है रुकना। सुबह से लेकर सूरज डूबने तक खाने-पीने से रुकने को सौम कहते हैं। रमजान के सारे रोजे रखना हर मुसलमान मर्द, औरत, बालिग (जिसमें रोजा रखने की ताकत हो) पर फर्ज है। रोजा हमारे अंदर यतीमों, मोहताजों, गरीबों, जरूरतमंद लोगों और मुसीबतजदां इंसानों की मदद करने का जज्बा भी पैदा करता है।