आजमगढ़: बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती द्वारा उत्तर प्रदेश में होने वाले उप-चुनाव में अकेले ही 11 सीटों पर लड़ने के फैसले के बीच समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन को लेकर एक बड़ा बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि यह लड़ाई दूसरे किस्म की थी, जिसे वह समझ नहीं पाए। आजमगढ़ से सांसद चुने जाने के बाद जनता का धन्यवाद करने आए अखिलेश ने एक जनसभा में कहा कि लोकसभा चुनाव में फरारी कार और साइकिल के बीच मुकाबला था। सब जानते थे कि फरारी जीत जाएगी। लोकसभा चुनाव मुद्दों पर नहीं हुआ, वह तो कुछ और ही बातों पर हुआ है।
उन्होंने इशारों में सपा की हार का ठीकरा मीडिया के सिर फोड़ते हुए कहा कि बताइए हर दिन टीवी पर कौन दिखता था, किसका टीवी था? वे हमारे दिमाग में टीवी और मोबाइल से खेल। यह अलग किस्म की लड़ाई थी, हम इस लड़ाई को नहीं समझ पाए। जिस दिन हम इस लड़ाई को समझ जाएंगे उस दिन जीत जाएंगे। अखिलेश यादव ने कहा कि विरोधी काफी ताकतवर हैं, लेकिन सामाजिक गठबंधन के जरिए उन्हें मात देने का प्रयास निरंतर जारी रहेगा।
इस दौरान उन्होंने कार्यकर्ताओं की हत्या को लेकर प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा किया, वहीं यह दावा किया कि पार्टी को सीट भले ही न मिली हो लेकिन उसका हौसला बरकरार है। सपा अध्यक्ष ने कहा कि हमें जिनसे लड़ना है, वह काफी ताकतवर हैं, जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते। मगर, जिस समय शासन और प्रशासन अन्याय करने लगे, देश और समाज को छोड़ अपनी तरक्की में जुट जाये तब हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है।
उन्होंने कहा कि हम और बसपा के साथी मिलकर सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ेंगे। अखिलेश ने कहा कि उनकी पार्टी भले ही चुनाव हार गयी हो, लेकिन हम विरोधी दलों को चुनौती देते हैं कि वे अपनी सरकार में कराये गये विकास कार्य और हमारी सरकार के विकास कार्यों की तुलना कर लें। उनका काम नहीं टिक पायेगा। गौरतलब है कि सोमवार को बसपा प्रमुख मायावती ने यूपी में होने वाले उप-चुनाव में सभी 11 सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ने का एलान किया था।
ध्यान हो कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को मात्र 5 सीटें आई हैं और पिछले चुनाव में एक भी सीटें न जीत पाने वाली बीएसपी को 10 सीटें मिल गईं। इस नतीजे के बाद समाजवादी पार्टी में अंदर ही अंदर इस बात की चर्चा की थी कि बीएसपी का वोट सपा को ट्रांसफर नही हुई है। इस बात की आशंका सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने पहले ही जता दी थी और उनकी बात सही साबित हुई। गौरतलब है कि बसपा के साथ गठबंधन के बावजूद समाजवादी पार्टी को महज पांच सीटें ही मिली हैं। इतना ही नहीं सपा के दुर्ग कहे जाने वाले कन्नौज, बदायूं और फिरोजाबाद में परिवार के सदस्य चुनाव हार गए।
कई लोगों का यह भी कहना है कि गठबंधन के सीट बंटवारे में मायावती ने मन मुताबिक सीटें ले लीं। वोटों के अदान-प्रदान के लहजे से देखें तो जिन 10 सीटों पर बसपा ने जीत दर्ज की है, वहां सपा 2014 में दूसरे स्थान पर थी। इसी कारण सपा को असफलता मिली। नगीना, बिजनौर, श्रावस्ती, गाजीपुर सीटों पर सपा के पक्ष में समीकरण था। दूसरा कारण गठबंधन की केमेस्ट्री जमीन तक नहीं पहुंची। सभाओं में भीड़ देखकर इन्हें लगा कि हमारे वोट एक-दूसरे को ट्रान्सफर हो जाएंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।" मायावती को यह मालूम था कि मुस्लिम वोटरों पर मुलायम की वजह से सपा की अच्छी पकड़ है। इसका फायदा मायावती को हुआ। मायावती ने जीतने वाली सीटें अपने खाते में ले ली। कई सीटों पर बसपा उम्मीदवार बहुत मामूली अंतर से हार गए। इसमें मेरठ और मछली शहर शामिल हैं। मछली शहर में मो बसपा उम्मीदवार टी. राम अपने भाजपा प्रतिद्वंद्वी बी.पी. सरोस से मात्र 181 मतों से हार गए।
राजनीतिक विश्लेषक राजेन्द्र सिंह के अनुसार, "चुनाव में सपा-बसपा के नेताओं ने तो गठबंधन कर लिया, लेकिन यह जिला और ब्लाक स्तर पर कार्यकर्ताओं को नहीं भाया। आधी सीटें दूसरे दल को देने से उस क्षेत्र विशेष में उस दल के जिला या ब्लाक स्तरीय नेताओं को अपना भविष्य अंधकारमय दिखने लगा." इन सबका परिणाम यह हुआ कि सपा का वोट प्रतिशत 2014 के लोकसभा चुनाव के 22.35 प्रतिशत से घटकर इस बार 17.96 फीसदी रह गया। वोट प्रतितशत बसपा का भी घटा, लेकिन उसके वोट सीटों में बदल गए। 2014 के आम चुनाव में बसपा को 19.77 प्रतिशत मत मिले थे, जो इस बार घटकर 19.26 फीसदी रह गए। कुल मिलाकर समाजवादी पार्टी पहले कोई फैसला कर पाती तो बीएसपी सुप्रीमो ने विधानसभा के उप चुनावों में समाजवादी पार्टी से रिश्ता तोड़ने का एलान कर दिया।