नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर आया एग्जिट पोल संकेत देता है कि सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन पहले के मुकाबले ताकत बढ़ा रहा है, लेकिन वह भाजपा को पिछली बार के मुकाबले आधे से कम सीटों पर रोक पाने में कामयाब होते नहीं दिख रहा। पिछली बार भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 71 सीटें जीती थीं और अपना दल को मिलाकर यह आंकड़ा 73 तक पहुंच गया था। पिछले चुनाव में सपा को पांच, कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं, वहीं बसपा खाता भी नहीं खोल पाई थी। यूपी को लेकर एग्जिट पोल के अनुमानों में अंतर दिख रहा है।
एग्जिट पोल के मुताबिक, मोदी की करिश्माई छवि की बदौलत भाजपा को 38 से 58 और सपा-बसपा गठबंधन को 20 से 40 सीटें मिल सकती है। वहीं कांग्रेस का आंकड़ा पिछली बार की दो सीटों से बढ़कर चार तक पहुंच सकता है। हालांकि एबीपी-एसी नील्सन के सर्वे की माने तो भाजपा का आंकड़ा 71 से घटकर 22 तक आ सकता है। अगर ऐसा होता है तो नतीजों में काफी हद तक अंतर आ सकता है।
चुनाव विश्लेषकों का कहना है कि एग्जिट पोल तो एनडीए को बढ़त के संकेत दे रहे हैं, लेकिन यूपी के वास्तविक चुनाव परिणाम में अगर भाजपा का अच्छा प्रदर्शन नहीं रहता है तो एक बार सियासी सरगर्मी बढ़ सकती है। राज्य की 80 सीटों के नतीजे नई सरकार को लेकर निर्णायक भूमिका निभाएंगे।
विश्लेषकों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव में हार ने सपा और बसपा को 25 साल बाद साथ आने को मजबूर किया। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 300 से ज्यादा सीटें जीतकर अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार को उखाड़ फेंका था। कैराना और गोरखपुर के उपचुनाव में सपा, बसपा और रालोद के गठबंधन को सफलता भी मिली थी, लेकिन आम चुनाव में गठबंधन एक दूसरे को वोट का स्थानांतरण कैसे कर पाया, नतीजे इसी पर निर्भर करेंगे।
विश्लेषकों की मानें तो यूपी में गठबंधन द्वारा बिछाई गई जातीय समीकरणों की बिसात की भाजपा काट निकालने में कामयाब लग रही है। गठबंधन पिछड़ा, मुस्लिम और दलित वोटों को पूरी तरह एक पाले में लाने में सफल होते नहीं दिख रहा।