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लखनऊ: उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने म्यांमार स्थित बहादुर शाह जफर की दरगाह पर फूल चढ़ाकर उन्हें अपनी और देश की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित की। अंग्रेजी हुकूमत ने दिल्ली के आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर को देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में सैनिकों का नेतृत्व करने के कारण मुल्क बदर कर रंगून की जेल में कैद कर दिया था। रंगून जेल में ही 7 नवंबर, 1862 को जफर का निधन हो गया था। राज्यपाल ने कहा कि 1857 में देश की आजादी के लिए बिगुल फूंकने वालों के कारण ही बाद में 1947 में देश को आजादी मिली। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने इसे हुकूमत के खिलाफ बगावत बताया था। झांसी की रानी के पैगाम पर बगावत में बादशाह बहादुर शाह जफर भी शामिल हुए थे। उनकी लिखी गजलें मशहूर हुईं। उन पर टीवी धारावाहिक भी बना था। इसी क्रम में ऑल इंडिया म्यांमार सेंट्रल काउंसिल, ऑल म्यांमार इंडियन बिजिनेस चैम्बर और संस्था भामा शाह शाखा द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में राज्यपाल नाईक को अंग वस्त्र, पुस्तक व स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। नाईक ने सभी का अभिवादन करते हुए अपने जीवन के अनुभव साझा किए तथा अपनी पुस्तक 'चरैवेति! चरैवेति!!' की हिंदी एवं अंग्रेजी प्रति भेंट की।

इससे पहले राज्यपाल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू रविवार को म्यांमार स्थित भारतीय दूतावास के राजदूत विक्रम मिस्री के आवास पर उनके सम्मान में आयोजित भोज में शामिल हुए। इससे पूर्व, शनिवार की रात राज्यपाल राम नाईक के सम्मान में म्यांमार की सरकार की ओर से सम्मान भोज का आयोजन किया गया था, जिसमें म्यांमार सरकार के वरिष्ठ मंत्री व गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। राज्यपाल अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन 'संवाद-2' में प्रतिभाग करने के लिए म्यांमार दौरे पर हैं। समापन सत्र में स्वामी अवधेशानंद एवं मुख्यमंत्री योगी ने राम नाईक को रूद्राक्ष की माला पहनाकर सम्मानित किया।

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