बेंगलुरु: न्यायपालिका के साथ टकराव की स्थिति पैदा करने वाला कदम उठाते हुए कर्नाटक ने शुक्रवार को वस्तुत: इस बात से इंकार कर दिया कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुरूप वह तमिलनाडु को कावेरी नदी का शेष पानी देगा। राज्य विधानसभा के विशेष सत्र में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें कहा गया है कि पानी का उपयोग सिर्फ पेयजल की जरूरतों के लिए होगा और इसे किसी दूसरे मकसद के लिए नहीं दिया जाएगा। इस एक सदी से पुराने विवाद में अप्रत्याशित कदम उठाते हुए कर्नाटक विधानसभा और विधान परिषद ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें कहा गया है कि पेयजल की जरूरतों के अलावा किसी दूसरे मकसद के लिए पानी नहीं दिया जाएगा। सदन में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने अपने जवाब में कहा, ‘यह असंभव परिस्थति पैदा हो गई है जहां अदालती आदेश का पालन संभव नहीं है।’ उन्होंने यह भी कहा कि राज्य ‘गंभीर तनाव’ में है और कावेरी से पेयजल की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही संघर्ष कर रहा है। विधानसभा में पारित प्रस्ताव में उच्चतम न्यायालय के आदेश का उल्लेख नहीं है, लेकिन कर्नाटक न्यायपालिका के साथ टकराव की स्थिति में आ सकता है। देश की शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि कनार्टक 21 से 27 सितम्बर तक रोजाना 6,000 क्यूसेक पानी तमिलनाडु के लिए छोड़े। कांग्रेस ने कहा कि कर्नाटक विधानसभा की ओर से पारित किये गए प्रस्ताव में कुछ भी गलत नहीं है। पार्टी प्रवक्ता टॉम वडक्कन ने कहा, ‘विधानसभा में हुई चर्चा लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। मैं नहीं सोचता कि यह संवैधानिक रूप से गलत है।
आप वह नहीं दे सकते जो आपके पास नहीं है।.अगर ऐसा नहीं है तो समस्या है।’ सिद्धरमैया ने कहा, ‘किसी को यह नहीं समझना चाहिए कि हम उच्चतम न्यायालय को चुनौती दे रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि उनकी सरकार तीनों अंगों- विधायिका, कार्यपालिका और न्यापालिका का समान रूप से पूरा सम्मान करती है और न्यायपालिका के प्रति उसे पूरा सम्मान है। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘लोगों ने हमें जनादेश दिया है। हम उसकी अवज्ञा नहीं कर सकते। ऐसा करना कर्तव्य से विमुख होना होगा।’ राज्य में जल संकट का उल्लेख करते हुए सिद्धरमैया ने कहा, ‘हम न्यायपालिका का बहुत सम्मान करते हैं। हमारा इरादा न्यायिक आदेश की अहवेलना करना नहीं है। हम सपने में भी ऐसा करने के बारे में नहीं सोच सकते।’ कर्नाटक के सभी दलों के समर्थन से पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि जरूरी है कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि कावेरी नदी के जलाशयों में जो पानी बचा है उसको पेयजल की जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करने के अलावा इसका दूसरे मकसद के लिए उपयोग नहीं हो। विपक्षी भाजपा नेता जगदीश शेट्टार ने अंग्रेजी भाषा में इस प्रस्ताव को पेश किया, जबकि जदएस के नेता वाईएसवी दत्ता ने कन्नड़ भाषा वाले प्रस्ताव को रखा। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि कावेरी बेसिन के चार जलाशयों- कृष्णाराजा सागर, हेमवती, हरांगी और काबिनी- में जल स्तर 27 टीएमसी फुट तक नीचे चला गया है। प्रस्ताव ने कहा है कि यदि बेंगलुरु समेत कावेरी बेसिन के सभी क्षेत्रों के लोगों की पेयजल जरूरतों को पूरा करने सिवा किसी अन्य जरूरत के लिए कावेरी बेसिन के चार जलाशयों में पानी घटा तो राज्य के बाशिंदों के हित गंभीर रूप से खतरे में पड़ जाने की आशंका है। कावेरी निगरानी समिति ने 19 सितंबर को कर्नाटक को 21-30 सितंबर के दौरान 3000 क्यूसेक पानी रोजाना छोड़ने को कहा था लेकिन शीर्ष अदालत ने 20 सितंबर को यह मात्रा दोगुनी कर दी क्योंकि तमिलनाडु ने अपनी सांबा धान फसल को बचाने के लिए पानी की जरूरत का उल्लेख किया था। न्यायालय ने साथ ही केन्द्र को कावेरी जल विवाद पंचाट के निर्देश के तहत चार हफ्ते के भीतर कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया।