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नई दिल्ली: कर्नाटक राज्य के लिए अलग झंडे की मांग के प्रस्ताव को केंद्रीय गृहमंत्रालय ने खारिज कर दिया है। गौरतलब है कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने राज्य को अलग झंडा कैसे मिलेगा यह तय करने के लिए एक समिति गठित की थी। फिलहाल सिर्फ जम्मू-कश्मीर के पास ही यह विशेष संवैधानिक अधिकार है। अगले साल राज्य में चुनाव हैं और इसी के चलते कांग्रेस सरकार इस तरह के कदम उठा रही है। सरकार समय रहते कन्नड़ संस्कृति की रक्षा के मुद्दे को भुनाना चाहती है। अभी कुछ समय पहले ही कन्नड़ भाषा के समर्थकों द्वारा मेट्रो स्टेशनों पर हिंदी में निर्देश लिखे जाने पर काफी विरोध किया था। उनका कहना था कि ऐसा करके भाजपा शासित केंद्र राज्य पर हिंदी को थोपना चाहता है। आज कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि क्या संविधान में ऐसा कोई प्रावधान है जो एक राज्य को अपना झंडा रखने से रोकता हो? इसके बाद उन्होंने कहा कि इस बात का चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है। अगर भाजपा इसका विरोध कर रही है तो क्या वो यह खुलकर कह सकती है कि वो एक राज्य के ध्वज का विरोध करती है?

पांच साल पहले जब कर्नाटक में भाजपा की सरकार थी तो उसने इस सुझाव को सिरे से खारिज कर दिया था कि राज्य के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में इस्तेमाल होने वाला लाल और पीले झंडे को राज्य का ध्वज करार देना चाहिए। उस समय सरकार ने हाई कोर्ट से कहा था कि इस तरह का कोई ध्वज भारत की एकता और अखंडता के खिलाफ होगा। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस कर्नाटक सरकार के अलग ध्वज की मांग से खुश नहीं है। वहीं संविधान विशेषज्ञ पीपी राव का कहना है कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत किसी राज्य को अपना ध्वज रखने की इजाजत हो।

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