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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज (सोमवार) दिल्ली सरकार सहित विभिन्न निकायों की याचिकाओं पर तीन निजी बिजली वितरण कंपनियों से जवाब मांगा। इन याचिकाओं में दिल्ली हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती दी गई है कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा इन बिजली वितरण कंपनियों की जांच नहीं की जा सकती। न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ ने तीनों कंपनियों टाटा पॉवर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड (टीपीडीडीएल), बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड और बीएसईएस यमुना पॉवर लिमिटेड से चार सप्ताह के अंदर अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा और मामले की अंतिम सुनवाई दो मार्च के लिए नियत कर दी। पीठ दिल्ली सरकार, कैग और गैर सरकारी संगठन यूनाइटेड आरडब्ल्यूए जॉइंट एक्शन (यूआरजेए) द्वारा दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही थी।

अपीलों में दिल्ली उच्च न्यायालय के इस आदेश को चुनौती दी गई है कि इन बिजली वितरण कंपनियों का कैग द्वारा ऑडिट नहीं किया जा सकता क्योंकि ये कंपनियां पहले ही दिल्ली बिजली नियामक आयोग (डीईआरसी) के अधिकार क्षेत्र में आती हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने सात जनवरी 2014 को आप सरकार का तीनों बिजली वितरण कंपनियों का कैग द्वारा ऑडिट कराने के लिए दिया गया आदेश अपने फैसले में रद्द कर दिया था। शहर की सरकार ने तीनों बिजली वितरण कंपनियों का कैग से ऑडिट कराने का आदेश जिन आधारों पर दिया था उनमें उसकी इन डिस्कॉम्स में 49 फीसदी की हिस्सेदारी होने का आधार भी शामिल था। तीनों बिजली वितरण कंपनियां दिल्ली में बिजली की आपूर्ति करती हैं। हाईकोर्ट ने 30 अक्टूबर 2015 को दिए अपने आदेश में टीपीडीडीएल, बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड और बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड का कैग से ऑडिट कराने के आप सरकार के फैसले को लोक-लुभावनवादी (पॉलिस्ट) करार दिया था। तब हाईकोर्ट ने कहा था कि जब बिजली वितरण कंपनियों के खातों की जांच के लिए पहले से ही एक नियामक डीईआरसी है तो ऐसे में राज्य सरकार के कहने पर कैग द्वारा कोई ऑडिट नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने कहा था पूरे लाभ के बारे में विचार किए बिना ऐसे लोकवादी कदम न केवल जनहित के खिलाफ होंगे बल्कि अदालतों पर अनावश्यक बोझ भी डालेंगे। दिल्ली सरकार के इस तर्क से उच्च न्यायालय ने असहमति जताई थी कि ऑडिट का आदेश दर तय करने के लिए जनहित में दिया गया। उच्च न्यायालय ने कहा कि दरें तय करने का एकमात्र अधिकार डीईआरसी को है जिसके पास ऑडिट करने का अधिकार है या जिसने ऑडिट किया है और बिजली वितरण कंपनियों पर कैग की ऑडिट रिपोर्ट का बिजली कानून और सुधार कानून द्वारा लाई गई नियामक व्यवस्था में कोई स्थान नहीं है। डिस्कॉम, निजी कंपनियों और दिल्ली सरकार के बीच 51:49 फीसदी की हिस्सेदारी वाले संयुक्त उपक्रम हैं।

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