नई दिल्ली/कोलकाता: पश्चिम बंगाल में एक तरफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने पूरी ताकत झोंक दी है तो दूसरी तरफ देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के भीतर ही सिर फुटव्वल शुरू हो गया है। वाम दलों के साथ चुनाव लड़ रही कांग्रेस ने अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) से भी गठबंधन किया है और अब राज्यसभा में पार्टी के उपनेता ने इसे कांग्रेस की मूल विचारधारा के खिलाफ बता दिया। उन्होंने पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की उपस्थिति और समर्थन को शर्मनाक बताया है। वहीं, आनंद शर्मा को जवाब देते हुए अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि यह गठबंधन पार्टी नेतृत्व की मंजूरी से हुआ है।
कांग्रेस के नाराज नेताओं के समूह 'जी-23' के सदस्य आनंद शर्मा ने ट्वीट किया, ''आईएसएफ और ऐसे अन्य दलों से साथ कांग्रेस का गठबंधन पार्टी की मूल विचारधारा, गांधीवाद और नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है, जो कांग्रेस पार्टी की आत्मा है। इन मुद्दों को कांग्रेस कार्य समिति पर चर्चा होनी चाहिए थी।''
उन्होने अगले ट्वीट में कहा, ''सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई में कांग्रेस चयनात्मक नहीं हो सकती है। हमें हर सांप्रदायिकता के हर रूप से लड़ना है। पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की उपस्थिति और समर्थन शर्मनाक है, उन्हें अपना पक्ष स्पष्ट करना चाहिए।''
आनंद शर्मा की ओर से सवाल उठाए जाने के बाद अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ''हम एक राज्य के प्रभारी हैं और कोई भी फैसला बिना अनुमति के नहीं करते हैं।'' कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक आईएसएफ ने माल्दा और मुर्शिदाबाद में कुछ सीटों की मांग की है, जिन पर पार्टी ने 2016 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी।
फुरफुरा शरीफ दरगाह के सिद्दीकी का समर्थन पहले टीएमसी को हासिल था। लेकिन इस बार अब्बास सिद्दीकी ने अपना राजनीतिक मोर्चा बना लिया। पश्चिम बंगाल में कई सीटों पर फुरफुरा शरीफ का बेहद प्रभाव माना जाता है। कांग्रेस पार्टी अब्बास सिद्दीकी के सहारे मुस्लिम वोटों को अपने खेमे में करना चाहती है।