नई दिल्ली: जदयू ने नीलगायों को मारने के मामले में केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी पर अनावश्यक विवाद पैदा करने का आरोप लगाते हुए इसकी आलोचना की और बिहार के किसानों के हित में इस पशु को मारे जाने के कदम का समर्थन किया। जदयू प्रवक्ता और विधान परिषद सदस्य नीरज कुमार ने कहा, मेनका गांधी नीलगायों को मारने के मामले में अनावश्यक विवाद पैदा कर रही हैं। अगर उन्हें नीलगायों की इतनी ही चिंता है तो मैं उनसे अनुरोध करंगा कि वह मोकामा टाल इलाके में आएं और हम उन्हें नीलगायों के साथ गर्मजोशी से विदा करेंगे जिन्हें वह अपने बंगले या चिड़ियाघर में रख सकती हैं। कुमार ने कहा कि पशु अधिकार कार्यकर्ता और केंद्रीय मंत्री मेनका को इसके बजाय अपने मंत्रालय के बारे में अधिक चिंता करनी चाहिए। पशुओं को मारने से मानव-पशु संघर्ष में कमी लाने में मदद नहीं मिलेगी: पशु अधिकार संस्थाएं नीलगाय सहित पशुओं के कत्ल के मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी और प्रकाश जावड़ेकर के आमने-सामने आने के बाद पशु अधिकार संस्थाओं ने पर्यावरण मंत्रालय के रूख पर हैरत जताते हुए कहा कि इस तरह पशुओं की हत्या करने से मानव-पशु संघर्ष को कम करने में मदद नहीं मिलेगी। बहरहाल, पिछले साल मानव-वन्यजीव संघर्ष में 500 से ज्यादा लोगों के मारे जाने का जिक्र करते हुए पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि वन्यजीव संरक्षण कानून, 1972 में मानक परिचालन प्रक्रियाएं तय की गई हैं और मानव-पशु संघर्ष के वैज्ञानिक प्रबंधन की अनुमति उत्तराखंड, बिहार और हिमाचल प्रदेश को दी गई है।
भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के सदस्य एन जी जयसिम्हा ने बताया, यह केंद्र सरकार को उसकी इच्छा के मुताबिक घोषणा करने का अधिकार देता है। हम पर्यावरण मंत्रालय गए थे और सुझाव दिया था कि हमें संघर्ष में कमी लाने का काम करना चाहिए। पर्यावरण मंत्री के तौर पर जावड़ेकर को समझने की जरूत है कि वह पर्यावरण के संरक्षक हैं और उन्हें सुनिश्चित करना है कि यह आगामी पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहे। ग्रीनपीस इंडिया ने दावा किया कि यह मानव-पशु संघर्ष के प्रबंधन का मुद्दा नहीं है। संस्था ने यह भी कहा कि पशुओं की हत्या करना जवाब नहीं है, खासकर जब आप इसे नाश करने वाला प्राणी घोषित कर देते हैं, क्योंकि इससे सिर्फ मानसिकता बदलेगी। ग्रीनपीस इंडिया के कार्यकारी निदेशक रवि चेल्लम ने कहा, भारत पूरी दुनिया में अपनी सहनशीलता और प्रकति के साथ जीने की अपनी क्षमता के लिए जाना जाता है। ऐसी चीजों का आम लोगों की ओर से चीजों को देखने के तरीके पर गहरा असर पड़ेगा। इसका बुरा असर हो सकता है। चेल्लम ने कहा, आप नहीं कह सकते कि हाथी एक राष्ट्रीय धरोहर पशु है और दूसरी तरफ आप ये भी कहें कि यह विनाशक पशु है। उन्हें विनाशक घोषित करना जैव-विविधता एवं प्रकति के प्रति भारतीय आबादी के मूल्यों को गहरे तौर पर प्रभावित करेगा। पर्यावरण मंत्रालय के महानिरीक्षक (वन्यजीव) एस के खंडूरी ने बताया कि पिछले साल 500 से ज्यादा लोगों की जान मानव-पशु संघर्षों में चली गई और वन्यजीव (संरक्षण) कानून में मानक परिचालन प्रक्रियाएं तय की गई हैं। उन्होंने यहां एक बयान में कहा, लिहाजा, मंत्रालय ने हिरण, मोर या हाथी को मारने की अनुमति नहीं दी है। बहरहाल, कुछ संगठनों ने कहा कि किसी पशु को विनाशक घोषित करना और उन्हें मारना पारिस्थितिकी प्रबंधन का एक जरिया और यह एक तथ्य है कि नीलगायें एवं बंदर किसानों के लिए समस्याएं पैदा कर रहे हैं। पशुओं को मारे जाने के मुददे पर दो केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी और प्रकाश जावडेकर आज आमने सामने आ गए और मेनका गांधी ने कहा कि पर्यावरण मंत्रालय में हत्या के लिए लालसा है। पशुओं के मारे जाने का बचाव करते हुए वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि फसलों को बचाने के लिए राज्यों के आग्रह पर यह किया जाता है। दोनों मंत्रियों के बीच वाकयुद्ध को लेकर विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि मोदी सरकार में कोई टीमभावना या एकजुटता नहीं है। महिला एवं बाल विकास मंत्री तथा पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी का यह बयान हाल ही में बिहार में नीलगायों के मारे जाने के बाद आया है। उन्होंने इसे अब तक का सबसे बड़ा पशुसंहार करार दिया। मेनका ने कहा कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय हर प्रदेश सरकार को उन जानवरों की सूची देने के लिए कह रहा है जिनको मारने के लिए केंद्र से अनुमति ली जानी है। उन्होंने कहा, यह पहली बार हो रहा है। मैं जानवरों की हत्या के प्रति इस लालसा को नहीं समझ पाती हूं। उधर, जावड़ेकर ने इस बात पर जोर दिया कि यह जानवरों की आबादी का वैज्ञानिक प्रबंधन है और हिंसक घोषित किए जानवरों को मारने की इजाजत विशेष इलाकों के लिए सीमित समयावधि के लिए होती है। मेनका ने दावा किया कि केंद्र ने बिहार में नीलगायों, पश्चिम बंगाल में हाथियों, हिमाचल प्रदेश में बंदरों, गोवा में मोरों और चंद्रपुर में जंगली सूअरों को मारने की अनुमति दी है, जबकि राज्यों के वन विभागों का कहना है कि वे पशुओं को नहीं मारना चाहते। बिहार में नीलगायों को मारे जाने पर उन्होंने कहा कि यह उस वक्त हुआ है जब किसी गांव के मुखिया या किसानों ने उन्हें मारने का आग्रह नहीं किया था। आरोप पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जावडेकर ने कहा कि यह मौजूदा कानून के अनुसार किया जा रहा है और यह केंद्र सरकार का कार्यक्रम नहीं है। जावड़ेकर ने कहा, मौजूदा कानून के तहत जब किसान बहुत अधिक समस्याओं का सामना करते हैं और उनकी फसलें पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तथा जब राज्य सरकार प्रस्ताव भेजती हैं, तब हम इजाजत देते हैं और राज्य सरकारों के एक विशेष इलाके और समयावधि संबंधी प्रस्ताव को वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए अनुमति प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा, यह केंद्र सरकार का कार्यक्रम नहीं है। कानून ऐसा है। मेनका ने कहा कि महाराष्ट्र में सूखा प्रभावित चंद्रपुर में 53 जंगली सूअर मारे गए हैं और पर्यावरण मंत्रालय ने 50 और को मारने की अनुमति दी है जबकि राज्य का वन्यजीव विभाग वैसा नहीं चाहता है। जदयू प्रवक्ता आलोक अजय ने कहा, मंत्रालयों के बीच तालमेल नहीं है। पहली बार ऐसा नहीं हो रहा है। सभी मंत्रालय आपस में भिड़ रहे हैं और इसी वजह से काम ठप हो गया है। टीमवर्क का अभाव है। राकांपा प्रवक्ता राहुल नरवेकर ने कहा, मंत्रालयों के बीच कोई सामंजस्य नहीं है, एक व्यक्ति उन पर चीजों को थोप रहा है। यह कुशासन की एक और मिसाल है।