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नई दिल्ली (जनादेश ब्यूरो): प्रवासी भारतीयों को उनके घर पहुंचाए जाने का मुद्दे ने अब राजनीतिक रंग लेना शुरू कर दिया है। दरअसल इसकी शुरुआत प्रवासियों से किराए लिए जाने के संबंध में रेल मंत्रालय के फैसले के बाद हुई। इस मुद्दे पर विपक्ष के नेताओं ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। विपक्ष का कहना है कि संकट की इस घड़ी में प्रवासी मजदूर खुद ही आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, ऐसे में उनसे किराया लेना ठीक नहीं है। इसी बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एलान किया है कि प्रवासियों मज़दूरों का रेल किराया कांग्रेस वहन करेगी।

सोनिया गांधी की घोषणा के बाद अब इस मामले में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी पीछे नहीं रहना चाहते हैं। उन्होंने एलान किया है कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) बिहार सरकार को अपनी तरफ़ से 50 ट्रेनों का किराया देने को तैयार है। तेजस्वी ने कहा, 'हम ग़रीब बिहारी मज़दूर भाइयों की तरफ़ से इन 50 रेलगाड़ियों का किराया असमर्थ बिहार सरकार को देंगे। सरकार आगामी 5 दिनों में ट्रेनों का बंदोबस्त करें, पार्टी इसका किराया तुरंत सरकार के खाते में ट्रांसफ़र करेगी।'

गौरतलब है कि गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देश अनुसार राज्य सरकार को ही ट्रेनों का प्रबंध करना है इसलिए हम राज्य सरकार से आग्रह करते है कि वह मज़दूर भाइयों से किराया नहीं ले क्योंकि मुख्य विपक्षी पार्टी आरजेडी शुरुआती 50 ट्रेनों का किराया वहन करने के लिए एकदम तैयार है। आरजेडी उनके किराए की राशि राज्य सरकार को चेक के माध्यम से जब सरकार कहें, सौंप देगी।

वहीं रेल मंत्रालय के आला अफसरों का कहना है कि केंद्र सरकार पहले से ही रेल यात्रा पर काफी सब्सिडी दे रही है। मज़दूरों के लिए ट्रेन सोशल डिस्टेंसिग का ध्यान रखते हुए चलाई जा रही है इसलिए क्षमता से आधी भर कर ही चल रही हैं। इसका भार भी केंद्र पर ही है। इसके साथ ही मज़दूरों की स्क्रीनिंग के लिए डॉक्टर, सुरक्षा, रेलवे स्टाफ आदि का भी इंतज़ाम किया गया है। कुछ राज्य जहां से ट्रेन चलना शुरू करेंगी वे यात्री किराया दे रही हैं, जो कुल ख़र्च का 15% है। मध्य प्रदेश ने ऐसा किया है.।शिवराज सिंह चौहान ने इसका एलान भी किया है।

महाराष्ट्र ने अभी तक ऐसा कोई एलान नहीं किया है। अधिकांश राज्य पिछले चालीस दिनों से मज़दूरों के खाने-पीने और रहने का इंतज़ाम कर रहे हैं। ऐसे में उनके लिए ज्यादा ठीक यही है कि वे मज़दूरों को किराया देकर उन्हें घर भेज दें। लेकिन इस मुद्दे पर राज्यों ने अभी तक कोई खास नीति घोषित नहीं की है। कांग्रेस के प्रवासी मज़दूरों के रेल यात्रा किराया वहन करने की घोषणा के बाद यह मामला राजनीतिक रंग ले चुका है। केंद्र पर दबाव बनााने के लिए कांग्रेस शासित राज्यों को इस मुद्दे पर अपनी नीति की घोषणा करनी चाहिए।

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