नागपुर: दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने माओवादियों से कनेक्शन रखने के कथित आरोपों से बरी कर दिया है। दोषसिद्धि और आजीवन कारावास के खिलाफ दायर उनकी याचिका स्वीकार करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने आज ये फैसला सुनाया है। जस्टिस रोहित देव और जस्टिस अनिल पानसरे की खंडपीठ ने उन्हें तत्काल रिहा करने का भी आदेश दिया है।
साल 2017 में महाराष्ट्र की गढ़चिरौली की अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ साईबाबा ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। शारीरिक रूप से 90 फीसदी दिव्यांग साईबाबा को 2014 में नक्सलियों को समर्थन देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। साईबाबा शुरू से ही आदिवासियों-जनजातियों के लिए आवाज उठाते रहे हैं। जीएन साईंबाबा, जो शारीरिक अक्षमता के कारण व्हीलचेयर से बंधे हैं, वर्तमान में नागपुर केंद्रीय जेल में बंद हैं।
पीठ ने मामले में पांच अन्य दोषियों की अपील को भी स्वीकार कर लिया और उन्हें भी बरी कर दिया।
पांच में से एक की अपील पर सुनवाई लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो चुकी है। खंडपीठ ने दोषियों को तत्काल जेल से रिहा करने का निर्देश दिया जब तक कि वे किसी अन्य मामले में आरोपी न हों।
मार्च 2017 में, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने साईंबाबा और एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के एक छात्र सहित अन्य को कथित माओवादी लिंक और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की गतिविधियों में शामिल होने के लिए दोषी ठहराया था।
अदालत ने जीएन साईबाबा और अन्य को कड़े गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था।