मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने नारकोटिक्स नियंत्रण ब्यूरो (एनसीबी) के जोनल निदेशक समीर वानखेड़े और उनके परिवार के खिलाफ सार्वजनिक बयान देने से महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नवाब मलिक पर रोक लगाने से इंकार करने संबंधी एकल पीठ का आदेश सोमवार को निरस्त कर दिया।
न्यायमूर्ति एस. जे. काथावाला और न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की खंडपीठ ने एकल पीठ का 22 नवंबर का आदेश निरस्त किया। पीठ ने अपन आदेश में कहा कि ज्ञानदेव वानखेडे की अंतरिम आवेदन पर सुनवाई होने तक नवाब मलिक वानखेड़े परिवार के खिलाफ कोई भी सार्वजनिक बयान या ट्विट नहीं करेंगे।
मलिक और वानखेड़े के पिता के बीच एकल पीठ का आदेश वापस लेने और मलिक के खिलाफ दायर मानहानि के मुकदमे में मंत्री के खिलाफ अंतरिम अर्जी में ज्ञानदेव द्वारा उठाये गए मुद्दों पर नये सिरे से सुनवाई होने पर सहमति के बाद पीठ ने 22 नवंबर का न्यायमूर्ति माधव जामदार का आदेश निरस्त किया।
न्यायमूर्ति माधव जामदार की एकल पीठ ने 22 नवंबर को कहा था कि यद्यपि मलिक के ट्वीट, खास तौर पर केन्द्र सरकार में नौकरी पाने के लिए एनसीबी अधिकारी द्वारा फर्जी जाति प्रमाणपत्र देने और ड्यूटी पर रहने हुए गैरकानूनी ढंग से लाभ लेने से संबंधित, विद्वेषपूर्ण नजर आते हैं, लेकिन मंत्री को एक सरकारी अधिकारी के खिलाफ टिप्पणी करने से पूरी तरह रोका नहीं जा सकता है। ज्ञानदेव ने एकल पीठ के इस आदेश को चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति काथावाला और न्यायमूर्ति जाधव की पीठ ने पिछले सप्ताह ज्ञानदेव की अपील पर सुनवाई के दौरान कहा था कि वानखेडे के खिलाफ मलिक के बयान और ट्विट स्पष्ट रूप से दुर्भावना का मामला है और तार्किकता के आधार पर उन्हें इस तरह की टीका टिप्पणी करने से रोका जाना चाहिए।
पीठ ने सवाल किया था कि तथ्यों की पुष्टि के बगैर इस तरह की टिप्पणियां करना मंत्री के व्वहार के अनुरूप है? पीठ ने यह भी सवाल किया था कि ऐसा करने से पहले उन्होंने वानखेडे के खिलाफ जाति जांच समिति के पास औपचारिक शिकायत क्यों नहीं की?
मलिक ने उस समय एकल पीठ का आदेश वापस लेने के ज्ञानदेव के अनुरोध का विरोध किया था।