मुंबई {जनादेश ब्यूरो): राष्ट्रपति चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में आम राय बनाने की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कोशिशों को तगड़ा झटका लगा है। सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनने के सर्वाधिकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देने पर एनडीए के घटक दल शिवसेना ने असहमति जताई है। गौरतलब है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में हुए दो बार हुए राष्ट्रपति चुनाव में शिवसेना ने दोनों बार एनडीए के उमीदवार का समर्थन नहीं किया। पहली बार शिवसेना ने क्षेत्रवाद के नाम पर यूपीए उम्मीदवार प्रतिभा देवी पाटिल का समर्थन किया था। दूसरी बार शिवसेना ने यूपीए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था। इस चुनाव में भी शिवसेना ने पेंच फसा दिया है। इसी कवायद को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मुंबई में अपने तीन दिन के प्रवास के अंतिम दिन रविवार को सुबह 10 बजे के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के आवास 'मातोश्री' पहुंचे। इस मुद्दे पर दोनों नेताओं के बीच सवा घंटे तक चली बैठक में किसी एक नाम पर सहमति नहीं बनी है। बैठक में शिवसेना प्रमुख अपने बेटे आदित्य समेत शरीक हुए। जबकि अमित शाह का साथ देने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और महाराष्ट्र प्रदेशाध्यक्ष रावसाहब दानवे शामिल हुए। बैठक में भाजपा की तरफ से प्रस्ताव दिया गया कि राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार चुनने का सर्वाधिकार एनडीए में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिए गए हैं, लिहाज़ा शिवसेना को भी इस प्रस्ताव का समर्थन करना चाहिए।
इस प्रस्ताव पर शिवसेना ने सहमति नहीं दी। गौरतलब है कि शिवसेना अपनी तरफ से पहले ही सरसंघचालक मोहन भागवत और बाद में कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन के नामों को आगे कर चुकी है। भाजपा की कवायद थी कि शिवसेना नामों को सुझाने के बजाय एनडीए का अनुशासन बनाए रखने के संदेश को सम्प्रेषित करना चाहा रही थी। सूत्र बता रहे हैं कि शिवसेना ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार किया है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट कर दिया है कि भाजपाअपने उम्मीदवार का नाम बिना बताए शिवसेना से समर्थन की अपेक्षा कैसे कर रही है। ठाकरे का तर्क है कि वह अपने तरफ से दो नामों की घोषणा कर चुके हैं। लिहाज़ा अब भाजपा को उन पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए।. उनका तर्क है कि अगर नाम तय करना है, तो एनडीए तय करेगा। केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ये अधिकार नाम जाने बिना कैसे दिया जा सकता है।. ऐसे में बैठक ख़त्म कर खाली हाथ लौटने के सिवाय भाजपा नेतृत्व के सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं था।