जयपुर: राजस्थान में नेताओं और अफसरों के खिलाफ शिकायत और कार्रवाई के लिए इजाजत लेने वाले अध्यादेश को एक वकील ने चुनौती दी है। वकील एके जैन ने राजस्थान हाइकोर्ट में वसुंधरा राजे सरकार के इस नए अध्यादेश को चुनौती दी है। ये अध्यादेश एक तरह से सभी सांसदों-विधायकों, जजों और अफ़सरों को लगभग इम्युनिटी दे देगा।
उनके खिलाफ पुलिस या अदालत में शिकायत करना आसान नहीं होगा। सीआरपीसी में संशोधन के इस बिल के बाद सरकार की मंज़ूरी के बिना इनके खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं कराया जा सकेगा। यही नहीं, जब तक एफआईआर नहीं होती, प्रेस में इसकी रिपोर्ट भी नहीं की जा सकेगी।
ऐसे किसी मामले में किसी का नाम लेने पर दो साल की सज़ा भी हो सकती है। इसका विरोध जारी है। एक बयान जारी कर एडिटर्स गिल्ड ने इस का विरोध किया है। विपक्ष भी इसे लाए जाने का विरोध कर रहा है।
एडिटर्स गिल्ड का बयान
प्रत्यक्ष रूप से ये न्यायपालिका और नौकरशाही को झूठे एफ़आइआर से बचाने के लिए लाया गया। लेकिन ये मीडिया को तंग करने, नौकरशाहों के ग़लत कामों को छुपाने और संविधान द्वारा दी गई प्रेस की आज़ादी पर लगाम लगाने का घातक हथियार है। एडिटर्स गिल्ड चाहता है कि राजस्थान सरकार तुरंत अध्यादेश वापस ले और इसे क़ानून बनाने से परहेज़ करे।
फ़र्ज़ी और झूठे मुक़दमों के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठा कर सज़ा देने के बजाए राजस्थान सरकार ऐसा अध्यादेश लाई है जो संदेशवाहक को चुप कराना चाहता है। हालांकि एडिटर्स गिल्ड ने हमेशा से अदालतों में दायर एफ़आइआर की सही, संतुलित और ज़िम्मेदाराना रिपोर्टिंग की वकालत की है।
उसका मानना है कि राजस्थान सरकार का ये क़दम कठोर है और ये जनहित की ख़बर देने वाले पत्रकारों को गिरफ़्तार करने तक की खुली थूट देता है। राजस्थान कांग्रेस ने आज जयपुर में इस अध्यादेश के खिलाफ प्रदर्शन किया। कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं ने विरोध में काली पट्टी बांधकर प्रदर्शन किया।
राजस्थान सरकार ने इस पर सफाई भी दी है
-नया अध्यादेश भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए नहीं
-बिल दुर्भावना के मक़सद से होने वाली मुकदमेबाज़ी रोकने के लिए
-2013 से 2017 के बीच सेक्शन 156(3) के तहत हुए 73% केस पुलिस ने बंद किए
-ये केस गलत पाए गए, दुर्भावना के मकसद से दायर किए गए
-साढ़े तीन साल में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने 1158 केस दायर किए
-भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने 818 सरकारी कर्मचारियों को भ्रष्टाचार के तहत पकड़ा