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रियो डि जिनेरियो: परालम्पिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट दीपा मलिक ने कहा कि रियो परालम्पिक में मिला एफ-53 गोला फेंक स्पर्धा में रजत पदक उनके सपने देखने की हिम्मत करने का परिणाम है। दीपा ने अपने छह प्रयासों में 4.61 मीटर के सर्वश्रेष्ठ प्रयास से रजत पदक अपनी झोली में डाला। दीपा ने कहा, ‘मैंने सपना देखने की हिम्मत की और मेरे अंदर कड़ी मेहनत करने तथा जुनून की हद तक काम करने का दृढ़ निश्चिय है और इसी दृढ़ता से मैंने अपना सपना पूरा किया। महिलायें ज्यादातर इसे गंवा देती हैं लेकिन मैंने सुनिश्चित किया कि मेरे परिवार की अनदेखी नहीं हो, मेरे बच्चे भी अच्छा कर रहे हैं।’ दीपा के कमर के नीचे का हिस्सा लकवे से पीड़ित हैं, उनके पति सेना में कार्यरत हैं और वह दो बच्चों की मां हैं। रीढ़ की हड्डी के ट्यूमर की सर्जरी के बाद से वह पिछले 17 वर्षों से व्हीलचेयर पर ही हैं। वह 31 सर्जरी करा चुकी हैं। दीपा ने कहा, ‘मैं इस पदक को जीतकर बहुत खुश हूं और मैं अपने देश के लिये ऐसा कर सकी, उससे मैं और ज्यादा खुश हूं। मैं अपने कोचों और ट्रेनरों, भारतीय खेल प्राधिकरण और खेल मंत्रालय को शुक्रिया अदा करना चाहती हूं जिन्होंने मेरी ट्रेनिंग के लिये धन मुहैया कराया।’ उन्होंने कहा, ‘मैं अपने पति का भी शुक्रिया अदा करना चाहती हूं जो मेरे ट्रेनर हैं और अपनी बेटियों का भी जो मेरी ताकत और प्रेरणा हैं। मैं भारत वापस लौटने के लिये उत्सुक हूं।’

दीपा तैराकी में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुकी हैं, जिसके बाद उन्होंने 2009 में एथलेटिक्स में खेलना शुरू किया। उन्होंने कहा, ‘मैं पहली बाइकर, पहली तैराक, पहली रैली ड्राइवर थी और अब मैं पहली परालंपियन पदकधारी बनने जा रही हूं। यह बहुत बड़ी बात है। मैं इसका श्रेय अपनी बेटियों, पति, ट्रेनर, अपने देश को दूंगी। मैं बहुत उत्साहित हूं।’ दीपा स्वर्ण पदक जीत सकती थीं लेकिन वह बहरीन की फातिमा नेधाम से पिछड़ गयी जिन्होंने 4.76 मीटर के थ्रो से पहला स्थान प्राप्त किया जो क्षेत्रीय रिकार्ड भी था। यूनान की दिमित्रा कोरोडिका ने 4.28 मीटर के प्रयास से कांस्य पदक हासिल किया। वर्ष 2009 में दीपा पहली व्यक्ति बनी जिन्होंने कमर के नीचे के हिस्से में लकवे के बावजूद दुनिया की सबसे उंची पर्वत श्रृंखला में से एक और हिमालय की सबसे कठिन मोटर रैली में भाग लिया।

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