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नई दिल्ली: सरकार अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये विभिन्न उपायों पर काम कर रही है। सरकार उन बिंदुओं पर गौर कर रही है जो आर्थिक वृद्धि की गति में रुकावट का कारण बन रहे हैं। इसके लिये उत्पादक क्षेत्रों को कोष की आसान उपलब्धता सुनिश्चित करने और सकल वृद्धि को प्रोत्साहन के उपाय किये जा रहे हैं। सूत्रों ने यह जानकारी दी। सूत्रों ने कहा कि हालांकि, जिस रणनीति पर काम हो रहा है उसमें जीएसटी दरों में कटौती का प्रस्ताव शामिल नहीं है। क्योंकि सरकार का मानना है कि कर की दरें पहले से ही पूर्व के मुकाबले कम हैं।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की उद्योग मंडलों, बैंकों तथा विदेशी एवं घरेलू निवेशकों समेत विभिन्न पक्षों के साथ बैठकों में मिली प्रतिक्रियाओं के आधार पर वित्त मंत्रालय इन उपायों को अंतिम रूप दे रहा है। सूत्रों ने कहा कि पिछले कुछ दिनों में बैंक, एमएसएमई और वाहन समेत विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों के साथ हुई बैठकों में कुछ इन क्षेत्रों के लिये समस्या खड़ी कर रहे कुछ बिंदुओं को सामने रखा गया है। एक अधिकारी ने कहा, ‘‘वृद्धि को गति देने के लिये अड़चनों को जल्दी ही दूर किया जाएगा।’’ उसने कहा कि इससे उद्योग जगत की विभिन्न साझा चिंताएं दूर होंगी।

उद्योग जगत वृद्धि को गति देने के लिये उनके लिये कर्ज उपलब्धता सुनिश्चित करने, कर्ज लागत में कमी लाने और कुछ नीतियों को सरल बनाने पर जोर देता रहा है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिये 7 प्रतिशत वृद्धि का लक्ष्य रखा है और पहली तिमाही के आंकड़े इसी दिशा में है।

सूत्रों ने कहा कि सरकार जो कदम उठा रही है, उससे बजट में निर्धारित वृद्धि लक्ष्यों को हासिल करना मुश्किल नहीं है। वाहन उद्योग के माल एवं सेवा कर (जीएसटी) में कटौती के संदर्भ में सूत्रों ने कहा कि सरकार का विचार है कि दरें पिछली कराधान व्यवस्था के मुकाबले पहले से ही कम है। उसने कहा कि ऐसे में कर की दर में और कटौती की गुंजाइश बहुत कम है क्योंकि सरकार ने सामाजिक क्षेत्र की बाध्यताओं को पूरा करने और बुनियादी ढांचा विकास के लिये राजस्व लक्ष्य तय किये हैं।

सूत्रों ने कहा कि वाहन बिक्री में नरमी का कारण सरकार की नीतियां या जीएसटी दर कटौती को लेकर नहीं है बल्कि इसकी वजह उद्योगों की तरफ से चरणबद्ध तरीके से बीएस-VI माडल पेश करने में प्रतिरोध है।

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