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मुंबई: बैंक अब गैर-कंपनी वर्ग में संपत्तियों की गुणवत्ता को लेकर दबाव देख रहे हैं। इस लिहाज से बैंकों को कुल मिलाकर फंसे कर्ज के मामले में 2019-20 तक दबाव झेलना पड़ सकता है। एक रिपोर्ट में यह कहा गया है। इंडिया रेटिंग ने बैंकों पर जारी अपनी मध्यावधि परिदृश्य रिपोर्ट में सोमवार को कहा कि निजी क्षेत्र के बैंकों और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक और बैंक आफ बड़ौदा का परिदृश्य स्थिर बना हुआ है। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य सभी बैंकों का परिदृश्य नकारात्मक बना हुआ है।

रेटिंग एजेंसी के मुताबिक बैंकों को मौजूदा वित्त वर्ष और इसके बाद आने वाले साल के लिये कर्ज की लागत अथवा तीन प्रतिशत तक के प्रावधान को जारी रखना पड़ सकता है। रिपोर्ट में पुराने फंसे कर्ज जिसकी पहले पहचान हो चुकी है, को कर्ज की ऊंची लागत की वजह बताया गया है। इसके साथ ही फंसे कर्ज के समक्ष बढ़ा हुआ प्रावधान और खासतौर से गैर-कंपनी खातों में कर्ज वापसी समय पर नहीं होने की वजह से ऐसा हुआ है।

एजेंसी के मुताबिक चिंता की बात यह है कि अब गैर-कंपनी वर्ग में भी परिसंपत्तियों की गुणवत्ता को लेकर दबाव बढ़ रहा है। हालांकि, कंपनियों के मामले में फंसे कर्ज की स्थिति अपने शीर्ष पर पहुंच चुकी है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि विशेष उल्लेख खातों (एसएमए) में छोटी कंपनियों, लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमियों और व्यक्तिगत, खुदरा कर्जों का हिस्सा बढ़ा है। वित्त वर्ष 2016-17 के मुकाबले 2017-18 में इनमें वृद्धि हुई है। पांच करोड़ रुपये तक के कर्जों में जहां 31 से 60 दिन की अवधि के दौरान कर्ज की किस्त का भुगतान नहीं किया गया उनका हिस्सा 2017-18 में एक साल पहले के 29 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया। इसी प्रकार 61 से 90 दिन तक जहां वापसी नहीं हुई उनका हिस्सा पहले के 12 प्रतिशत से बढ़कर 68 प्रतिशत हो गया। कारपोरेट क्षेत्र में दबाव में आये कर्ज के मामले में रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो साल के दौरान कंपनियों का कुल फंसा कर्ज 20 से 21 प्रतिशत के दायरे में है।

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