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नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने संसदीय पैनल को एक नोट लिखकर कहा है कि अधिक आशावादी बैंकरों, सरकारी निर्णय लेने की प्रक्रिया में धीमी गति और आर्थिक विकास में सुधार ने मुख्य रूप से बढ़ते बैड लोन में योगदान दिया। एस्टिमेट कमिटी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी को लिखे एक नोट में राजन ने कहा, 'विभिन्न प्रकार की प्रशासनिक समस्याओं जैसे कोयला खदानों के संदिग्ध आवंटन के साथ-साथ जांच के डर जैसी दिक्कतों की वजह से यूपीए और बाद में एनडीए की सरकार की फैसले लेने की गति को धीमा कर दिया।

रघुराम राजन ने आगे कहा कि अधिक बैड लोन साल 2006-2008 के बीच में दिया गया, जब आर्थिक विकास काफी मजबूत था और पूर्व में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स जैसे पावर प्लांट्स आदि समय पर और बजट के अंदर ही पूरे हो चुके थे। पूर्व आरबीआई गवर्नर ने कहा, 'यह ऐसा समय था, जब बैंकरों ने गलती की। उन्होंने पूर्व में हुए विकास और भविष्य के प्रर्दशन का गलत तरीके से आंकलन किया। वे कई बार प्रोजेक्ट्स में ज्यादा हिस्सा लेना चाहते थे।

एक उदाहरण का हवाला देते हुए राजन ने कहा कि एक प्रमोटर ने मुझ बताया कि बैंकों ने चेकबुक लहराते हुए कहा कि जितनी राशि भरने की इच्छा है, भर लो। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से जैसा विकास की हम उम्मीद करते हैं, वैसा हर बार नहीं होता है। कई सालों के मजबूत वैश्विक विकास के बाद मंदी आगई और इस वजह से पूरे विश्व में वित्तीय संकट जैसी समस्याएं हो गईं। इस वजह से इसका असर भारत में भी पड़ा है।

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