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पालघर: पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए खादी ग्रामोद्योग आयोग ने प्लास्टिक के कचरे और कागज की लुगदी से सस्ता थैला विकसित किया है। नालियों से मिले प्लास्टिक कचरे से बने थैले की लागत 12 रुपये 10 पैसे है, जबकि पहले ऐसे थैले की लागत 15 रुपये पड़ती थी। आयोग के चेयरमैन विनय कुमार सक्सेना ने रविवार को बताया कि इसके लिए एक विशेष प्रक्रिया अपनाई गई है। प्लास्टिक के कचरे को नालियों से इकट्ठा किया गया और उसकी सफाई करके उन्हें प्रसंस्कृत किया। इस नई पहल को ‘रीप्लान’ (रीमूव प्लास्टिक फ्रॉम नेचर) नाम दिया गया है।

उन्होंने कहा कि थैलों के निर्माण में 20% प्लास्टिक के कचरे और शेष कागज की लुगदी का उपयोग किया गया है। आयोग ने कहा कि थैलों के लिए पहले सफेद कपास के रेशों से हाथ का कागज बनाने की लागत एक लाख रुपये प्रति टन आती थी। इसमें प्लास्टिक के कचरे का सम्मिश्रण करने से अब इसकी लागत 34% घटकर 66,000 रुपये प्रति टन रह गई है।

20 फीसदी कचरा मिलाया जा रहा

आयोग ने कहा, पहले एक लाख थैले बनाने के लिए 10 टन कागज लुगदी लगती थी, लेकिन नए प्रयोग के बाद अब इसमें 20% प्लास्टिक का कचरा मिलाया जा रहा है। इससे पर्यावरण से इतनी मात्रा में प्लास्टिक हटाने में मदद मिलेगी। यह निश्चित तौर पर पर्यावरण के लिए लाभकारी होगा।

थैलों का निर्माण

इन थैलों का निर्माण जयुपर स्थित कुमारप्पा हैंडमेड पेपर इंस्टीट्यूट (केएनएचपीआई) कर रहा है। आयोग ने केएनएचपीआई की स्थापना 26 साल पहले की गई थी। यह वित्तीय तौर पर बहुत बुरी स्थिति में था लेकिन नयी पहल से ना सिर्फ संयंत्र और उसकी मशीनरी का उचित उपयोग होगा बल्कि उसकी माली हालत भी सुधरेगी।

प्लास्टिक का समाधान

केवीआईसी के चेयरमैन सक्सेना ने कहा कि हम यह दावा नहीं करते कि ‘रीप्लान’ से प्लास्टिक की खपत का पूर्ण समाधान हो जाएगा, लेकिन इससे निपटने में मदद जरूर मिलेगी। यह अपशिष्ट प्लास्टिक सामग्री को हटाने का अर्ध-स्थाई तरीका है। यह केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत अभियान में सक्रिय भागीदारी के तहत भी है।

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