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नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक के लिए यह मुश्किल भरा समय है। आने वाले दिनों में केंद्रीय बैंक के लिए महंगाई पर काबू रखना बेहद चुनौतिपूर्ण होगा। तुर्की की मुद्रा लीरा के डूबने का असर दुनियाभर में पड़ा है और घरेलू मुद्रा रुपया भी इससे अछूती नहीं है। तुर्की के आर्थिक संकट से रुपया मंगलवार को डॉलर के मुकाबले घटकर 70.09 पर पहुंच गया। यह इसका ऐतिहासिक रिकॉर्ड निम्न स्तर है। हालांकि बाद में कुछ नुकसान के बाद रुपये 69.8525 तक संभला।

कारोबारियों का कहना है कि संभवत: आरबीआई की ओर से कुछ बैंकों ने डॉलरों की बिकवाली की। खुदरा मुद्रास्फीति का घटकर 9 महीने के निचले स्तर (4.17 प्रतिशत) पर और रुपया का ऐतिहासिक रिकॉर्ड निम्न स्तर पर आना निश्चित तौर पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) पर कुछ कड़े कदम उठाने के लिए दबाव बना रहा है। साउथ अफ्रीकी लेंडर फर्स्टरैंड लिमिटेड की स्थानीय इकाई (मुंबई) के प्रमुख परेश नायर ने कहा कि गिरावट ने रुपये की स्थिति में अस्थिरता पैदा की। रुपया की गिरावट रोकने के लिए आरबीआई ने जरूर हस्तक्षेप किया होगा।

आरबीआई की उलझन

वैश्विक बाजार में रुपया कमजोर होने के कारण महंगाई पर नियंत्रण रखना केंद्रीय बैंक के लिए काफी मुश्किल होगा क्योंकि अब आयात करना होगा महंगा पड़ेगा। गवर्नर उर्जित पटेल के नेतृत्व में मौद्रिक नीति समिति बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए जून के बाद से दो बार ब्याज दर बढ़ा चुकी है।

खुदरा मुद्रास्फीति उम्मीद से ज्यादा नीचे

सोमवार को खुदरा मुद्रास्फीति जुलाई महीने में उम्मीद से ज्यादा नीचे आ गई। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, खुदरा मुद्रास्फीति जुलाई महीने में घटकर 4.17 प्रतिशत पर आ गई। जो इसका पिछले नौ महीने का निचला स्तर है। जून में यह 4.92 प्रतिशत पर थी जो कि पिछले 5 महीनों में सबसे ज्यादा थी। अर्थशास्त्रियों के एक सर्वे में तब अनुमान लगाया गया था कि यह 4.51 प्रतिशत तक आ सकती है, लेकिन यह उससे भी नीचे आ गई। नीदरलैंड में रोबोबैंक इंटरनेशनल के वरिष्ठ अर्थशास्त्री हुगो इर्कन ने कहा कि कमजोर रुपया ने उर्जित पटेल और मौद्रिक नीति समिति के अन्य सदस्यों के लिए काफी दिक्कतें खड़ी कर दी हैं। आरबीआई के लगातार कड़े कदम ही इस गिरावट पर लगाम लगा पाएंगे।

फिलहाल चिंता की बात नहीं: सरकार

सरकार ने अमेरिकी डालर के मुकाबले रुपये के अब तक के न्यूनतम स्तर पर पहुंचने के लिये 'बाह्य कारकों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि इसमें चिंता की काई बात नहीं है। आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा कि आने वाले समय में इन बाहरी वजहों में सुधार आने की संभावना है। उन्होंने कहा, ''रुपये में गिरावट का कारण बाहरी कारक हैं और इस समय चिंता की कोई वजह नहीं है।

आनंद राठी शेयर्स एंड स्टाक ब्रोकर्स में शोध विश्लेषक आर मारू ने कहा कि आयातकों की अधिक मांग से रुपये की विनिमय दर में गिरावट आयी। उन्होंने कहा, ''तुर्की संकट को लेकर अनिश्चितता तथा डालर सूचकांक में तेजी को देखते हुए आयातक आक्रमक तरीके से डालर लिवाली कर रहे हैं। दूसरी तरफ आरबीआई की तरफ से आक्रमक हस्तक्षेप नहीं होने से भी रुपया नीचे आया।

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